मीडिया में एक युवा शख्स होता है जिसका नाम रखा गया है ,ट्रेनी रिपोर्टर । जी हां , ट्रेनी रिपोर्टर वो लोग होते है ,जो पत्रकारिता सीखने के लिए मीडिया स्कूल्स में लाखो रूपया बर्बाद करने के बाद न्यूज़ चैनल्स पहुचते है . इनके लिए हर कुछ नया होता है . लड़के दीपक चौरसिया और लड़किया बरखा दत्त बनने के सपने लेकर न्यूज़ चैनल्स पहुचते है. लेकिन जब वास्तविक दुनिया से इनका वास्ता पड़ता है तो इनके सपने चकनाचूर हो जाते है . ट्रेनी रिपोर्टर एक ऐसा शख्स होता है जिसे चैनल्स के लोग लपलपाते आखों से देखते है ॥यानि एक ऐसा घोड़ा जिस पर सवारी तो दिन रात करनी है ..लेकिन पैसा कुछ नही देना होता है . ट्रेनी रिपोर्टर बेबस होता है ..उसके पास अपनी कोई चोइस नही होता है . उसे चैनल्स के सारे लोग ज्ञान देने में लगे होते है ..और वो बेचारा दुम हिला कर सबकी बात सुनता रहता है ..उसे सिर्फ़ सुनना होता है ..बोलने की हिम्मत की ...फिर हो गई गुस्ताखी ...सीनियर रिपोर्टर बोलेगा ....जब में बोलू तो सिर्फ़ सुना करो .बीच में बोलने की हिमाकत मत करना जी हां ... ट्रेनी रिपोर्टर को ज्यादा गुस्सा तब आता है जब कोई लड़का अपराध रिपोर्टर बनने का सपना लेकर आता है ..और फिर कोई महिला रिपोर्टर के ना होने पर उसे शाहरुख़ खान के जन्मदिन की पार्टी को कवर करने के लिए भेज दिया जाता है ..तब वो लड़का रिपोर्टर शाहरुख़ के घर के बाहर कोने में पेशाब कर अपनी खीज उतारता है . कभी वो अपने भाग्य को कोसता है , तो कभी अपने बॉस को . क्या करे ..वो बेचारा जो है .लेकिन एक बात कहता हु . जब तक सोना तपता नही है , उसमे चमक नही आती है . ट्रेनी रिपोर्टर के रूप में घिसने के बाद वोह ट्रेनी रिपोर्टर जब रिपोर्टर बनता है ..तो उसकी धार मजबूत हो जाती है.. और फिर वही ट्रेनी रिपोर्टर एक दिन सब की वाट लगाता है . न्यूज़ चैनल्स के रहनुमाओ से अनुरोध है की ट्रेनी रिपोर्टर को भी चैनल्स में एक जगह मिलनी चाहिए. ये कोमल फूल होते है ..इन्हे भी भाई प्यार की जरुरत होती है .. यार पैसा न दे सको प्यार और दुलार तो देते रहो ..इस प्यार को देने में पैसे भी खर्च नही होते है ,और कोस्ट कटिंग का इससे बेहतर उपाय क्या है . जम कर दूध दुहो , और पैसे की बात हो तो बोल दो यार मंदी का दौर है ..हँस कर गुजारा कर लो .
लतिकेश
मुंबई
मुंबई
3 comments:
लातिकेशजी, सच कहू आप के लेखन ने तो हिला कर रख दिया हैं. हमें तो आज पता चला हैं की हम जैसे ट्रेनी रिपोटर्स के बारे में भी कोई सिनिर सोचता हैं...ये तो आप का बद्दापन हैं नही तो हमने और भी सीनियर देखे हैं जो इन ट्रेनी रेपोतेर्स को अपना कवछ बना कर तबतक इस्तमाल करते हैं जबतक उनके पास और कोई ट्रेनी रेपोतेर्स के रूप में दूसरा नही आजाता....
मिडिया कि दुनिया में ट्रेनी रिपोर्टर हो या आई टी कि दुनिया में प्रोजेक्ट ट्रेनी.. हर जगह सभी कि हालत एक जैसी ही है..
कुछ दिन हमें भी दुहा गया था.. हम थोड़े खुशनसीब भी थे जो कुछ स्टाइपेंड के नाम भी मिल जाता था.. मगर सभी ऐसे खुशनसीब नहीं होते हैं.. अब १-२ साल बाद ही हम भी सबकी वाट लगाने कि स्थिति में आ गए हैं.. :)
अब ट्रेनी तो नहीं है मगर फिर भी कम पैसे देकर दुहा जा रहा है.. कम से कम मुझे तो ऐसा ही लगता है.. इस साल इस पर एच आर वालों कि वाट भी लगानी है.. :)
aap to naveen ji jaisi http://chorjeb.blogspot.com ki tarah baat kar rahe hain , yakin ho chala hai ki shoshan har jagah hai lekin sabhi senior aise nahin hote 12 fikra bhi karte hain .aapka likha ateet yaad dila gaya .
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