Friday, October 15, 2010

बुखारी, कांग्रेस और दिग्विजय


(शनिवार /16 अक्तूबर 2010 / लोकेन्द्र सिंह राजपूत /ग्वालियर )
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बुखारी आतंकवादी ने संपादक को पीटा, कांग्रेस ने दिल्ली के निर्देश पर की मंत्रियों से धन उगाही और दिग्विजय सिंह शुक्र करो तुम्हारा जबड़ा नहीं टूटा... क्योंकि संघ सिमी या बुखारी नहीं
गुरुवार, 14 अक्टूबर 2010 को दिल्ली में आयोजित कॉमनवेल्थ का समापन सभी प्रकार की मीडिया के लिए प्राथमिक और प्रमुख समाचार रहा वहीं एक घटना और रही जो मीडिया और हर भारतवासी के लिए अति महत्वपूर्ण रही। जामा मस्जिद के इमाम अहमद बुखारी ने मीडिया के मुंह पर तमाचा मारा, वो भी कस के। दरअसल इमाम बुखारी अयोध्या मसले को सुप्रीम कोर्ट ले जाने की पैरवी करने के लिए नबाबों के शहर लखनऊ पहुंचे थे। वह एक पत्रकारवार्ता को संबोधित कर रहा था (किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचे तो पहुंचती रहे, लेकिन मैं बुखारी के लिए किसी भी प्रकार की सम्मानीय भाषा का उपयोग नहीं करूंगा), तभी उर्दू अखबार दास्तान-ए-अवध के संपादक अब्दुल वाहिद चिश्ती ने बुखारी से एक प्रश्न पूछा। जिस पर वह भड़क गया। एक संपादक की सत्ता को ललकार बैठा। तहजीब सिखाने का ठेकेदार बदतमीजी पर उतर आया। उसकी भाषा ऐसी थी कि जैसे किसी गली के नुक्कड़ पर खड़ा होने वाला छिछोरा लौंडा बात कर रहा हो। दास्तान-ए-अवध के संपादक का सवाल इतना सा था कि सन् 1528 के खसरे में उक्त भूमि पर मालिकाना हक राजा दशरथ के नाम से है, जो अयोध्या के राजा थे। इस नाते यह जमीन उनके बेटे राम की होना स्वाभाविक है, क्यों न मुसलमान इसे हिन्दू समाज को दे दें। वैसे भी हिन्दुओं ने बहुत सी मस्जिदों के लिए जगह दी है। एक और प्रश्न था-क्या इस मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट लेने की आपकी राय से मुल्क के सारे मुसलमान इत्तेफाक रखते हैं? इन प्रश्नों को सुनते ही बुखारी अपने रंग में दिखे। वैसे मुझे नहीं लगता ये इतने कठोर प्रश्न थे कि बुखारी को अपनी औकात पर उतरने के लिए मजबूर होना पड़। इसके बाद तो दिल्ली जामा मस्जिद के शाही इमाम बुखारी संपादक को जान से मारने की धमकी देते हुए कहता है- चोप बैठ जा, नहीं तो वहीं आकर नाप दूंगा। खामोश बैठ जा, चुपचाप...... तेरे जैसे 36 फिरते हैं मेरे आगे-पीछे........ बदमाश कहीं का, एजेंट..... इतना ही नहीं बुखारी का मन इससे भी नहीं भरा। उसने संपादक के साथ हाथापाई की। बुखारी ने अपने शागिर्दों को कहा-मार दो साले को... वरना ये नासूर बन जाएगा, अपन लोगों के लिए। यह सुनते ही बुखारी के शागिर्द टूट पड़े संपादक अब्दुल वाहिद पर।
घटना के बाद सारे पत्रकार एकजुट होकर बुखारी से पूछते हैं- आपको एक पत्रकार को मारने का हक किसने दिया। बुखारी इस पर कहते हैं-मारूंगा, तुम कर क्या लोगे। यह है महान बुखारी। वैसे बुखारी के इस कृत्य पर चौकने की कतई जरूरत नहीं। इस तरह की हरकतें करना इन महाशय की फितरत बन चुका है। सन् 2006 में भी इसने प्रधानमंत्री निवास के सामने पत्रकारों के साथ मारपीट की थी। आपको एक बात और बता देना चाहूंगा कि यह वही बुखारी है जिसने जामा मस्जिद से हजारों लोगों की भीड़ के सामने भारतीय सरकार और व्यवस्था को चुनौती देते हुए कहा था- मैं हूं सबसे बड़ा आतंकवादी। अगर है किसी में दम तो करे मुझे गिरफ्तार। उस समय सारे बुद्विजीवी और कथित सेक्युलर अपनी-अपनी मांद में छुप कर बैठ गए। किसी ने कागद कारे नहीं किए। मुझे उन लोगों पर आज भी पूरा यकीन है। वे या तो बुखारी के इस कृत्य को उचित सिद्ध करने के लिए कलम रगड़ेंगे या फिर खामोश रह कर किसी और मुद्दे की ओर ध्यान खींचेंगे, लेकिन वे एक शब्द लिखकर भी इमाम बुखारी और उसकी मानसिकता का विरोध नहीं करेंगे।
- आज की एक और घटना अधिक चर्चित रही। वह है कांग्रेस की सुपर मैम सोनिया गांधी की वर्धा रैली के लिए धन उगाही की। इस घटना का खुलासा बड़ा रोचक रहा। दरअसल किसी आयोजन के समाप्त होने के बाद महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष माणिक राव ठाकरे और पूर्व मंत्री सतीस चतुर्वेदी निश्चिंत बैठ गुफ्तगूं में मशगूल हो गए। दोनों वर्धा रैली में किस-से कितना पैसा वसूला गया, इस पर चर्चा कर रहे थे। अहा! किस्मत, तभी किसी कैमरे में दोनों रिकॉर्ड (यह कोई स्टिंग ऑपरेशन नहीं था) हो गए। माणिक राव पूर्व मंत्री सतीस से कह रहे थे कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पहले तो पैसे देने से ना-नुकुर कर रहा था, लेकिन बाद में दो करोड़ ले ही लिया। बाकी मंत्रियों से दस-दस लाख रुपया लिया गया है। इस मसले पर दोनों की काफी देर तक बात चली। सब कुछ कैमरे में कैद हो गया और खबरिया चैनलों के माध्यम से जनता के सामने आ गया। सब साफ है, लेकिन फिर भी कोई कांग्रेसी स्वीकार नहीं कर रहा कि रैली के लिए कांग्रेस धन उगाही करती है। रैली के लिए करोड़ और लाख-लाख रुपए की वसूली के निर्देश दिल्ली से आए थे, यह दोनों की बातचीत से स्पष्ट हुआ। हमारे प्रदेश के बयान वीर दिग्विजय सिंह इतना ही कह सके कि कांग्रेस में रैली व अन्य आयोजनों के नाम पर धन उगाही नहीं होती, जबकि सबूत हिन्दोस्तान की सारी जनता के सामने था। घटना के बाद बड़े सवाल पीछे छूट गए कि इतना पैसा मंत्रियों के पास आता कहां से है? जनता सवाल भी जानती है और जवाब भी, लेकिन बाजी जब जनता के हाथ होती है तो वह भूल जाती है अपना कर्तव्य।
वहीं बयानवीर दिग्विजय सिंह ने एक और अनर्गल बयान जारी किया है कि संघ पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई से पैसा लेता है। उनका कहना है कि उनके पास सबूत हैं। वे एक माह में सब दूध का दूध और पानी का पानी कर देंगे। दिग्विजय आपके पास तो इस बात के भी सबूत थे कि संघ पार्टी में अवैध हथियार बनते हैं, बम बनाए जाते हैं, लेकिन आप आज तक वो सबूत पेश नहीं कर पाए। दरअसल दिग्विजय को सच या तो पचता नहीं है या दिखता नहीं है। उनकी पार्टी का महान कारनामे की वीडियो फुटेज टीवी चैनल पर चल रही थी, तब भी राजा साहब कह रहे थे कि कांग्रेस धन उगाही नहीं करती। क्या दिग्विजय को इतना बड़ा सबूत नहीं दिखा। खैर मैं तो बड़ी बेसब्री से एक माह बीतने का इंतजार कर रहा हूं, जब राजा साहब एक बड़ा खुलासा करेंगे। मैंने इससे पूर्व के लेख में लिखा था कि संभवत: राहुल के कान दिग्गी ने ही भरे होंगे या फिर अपने लिए लिखा भाषण राहुल से पढ़वा दिया होगा। तभी राहुल बाबा बिना ज्ञान के संघ की तुलना सिमी से कर गए थे। उसके बाद राहुल के बचाव में दिग्विजय बड़े जोर-शोर से जुटे हैं और संघ को सिमी जैसा बताने का भरसक प्रयास कर रहे हैं। दिग्गी शुक्र करो संघ इमाम बुखारी या सिमी जैसा नहीं है.... देखा होगा इमाम ने तो एक सामान्य सवाल पूछने पर ही एक उर्दू अखबार के संपादक का मुंह तोड़ दिया।

(लेखक एक राष्ट्रीय दैनिक में सब -एडिटर के पद पर कार्यरत है. )

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