Friday, October 1, 2010


सौरभ की समीक्षा.. अंजाना अंजानी
(शनिवार /०२ अक्टूबर २०१०/ सौरभ कुमार गुप्ता /नई दिल्ली


कॉमिक होते होते रह जाने वाले कई सीन। इमोशनल होते होते रह जाने वाले कई दृश्य। दिलचस्प होते होते रह जाने वाली कई अंजान गुंजाईशों का सिलसिला यह फिल्म।

दो किरदार, केवल। टूटा दिल, खाली जेब लिए, बेफिक्री से कई सफर करते दो किरदार। कहीं न पहुंच पा रही उनकी जिंदगी की गोल घूमने वाली कहानी, अच्छा संगीत और दर्शक की फिल्म से कम अच्छा होने की उम्मीद के कारण रोचक बनती फिल्म।

जाने पहचाने दो अंजाना अंजानी। जानते हम प्रियंका को भी हैं और रणबीर को भी। लेकिन फिर भी फिल्म बनी। दो ऐसे आधुनिक किरदार, जो याद रखने लायक भले ही न हों लेकिन इग्नोर करने लायक भी नहीं। सवाल देखने जाने या न जाने का, तो मत देख लेने की ओर अधिक।

फिल्म का पहला हाफ अगर एक दिशा में है तो दूसरा हाफ दूसरी दिशा में। फिल्म को बनाते बनाते निर्देशक को मानो याद आया कि यार हमें तो लव स्टोरी बनानी थी। चलो दूसरे हाफ से ही शुरू करते हैं।

सोनम और इरफान की 'I hate Love Stories' बताए गए लव स्टोरी बनाने के सभी फार्मूलों का इस्तेमाल अंजाना अंजानी की नायाब कहानी में है। दिलचस्प यह बात कि फिल्म के लगभग 90 प्रतिशत हिस्से में हमें अपने पसंदीदा रणबीर और प्रियंका देखने को मिलते हैं। दोनों बेहतरीन लगे हैं, दिखे हैं बेहद स्वाभाविक, लेकिन रहे हैं वास्तविकता से परे।

अब केवल दो किरदारों पर पूरी फिल्म ग़ लेना अपने आप में रोचक तो है। आमतौर पर इस आईडिया से बनी लव स्टोरीज़ में किरदारों की भीड़ बहुत होती है। पर यहां नहीं। इससे एक और पहलू पर गौर करने का मन करता है कि किस तरह यह आज की लव स्टोरी है। जिसमें आसपास, घर, दोस्त की अहमियत को कम दार्ते हुए दोनों किरदार केवल अपने पर ध्यान दिए जिंदगी जिए जा रहे हैं।

तो अपने आसपास को भुलाती, अमेरिका के तीन शहरों में घूमती इसकी कहानी, इमोशनल न सही, नायाब न सही, पर कुछ हद तक दिलचस्प ज़रूर दिखाई और सुनाई देती है। हाल की हर कामयाब लव स्टोरी का हिस्सा अपने में शामिल करती फिल्म। चाहे वो 'Jab We Met' हो या फिर 'Jaane Tu ya Jaane na'. 1999 की फ्रेंच फिल्म Girl on the Bridge और 2007 की The Bucket List से कुछ हद तक प्रेरित इसकी कहानी।

किरदारों के जीवन के ज़रिए आर्थिक मंदी से लेकर युवाओं की हाल की हर वो समस्या को केवल छूती भर यह फिल्म। कहानी और लॉजिक से कुछ परे होते किरदार। या कहें तो उन्हें अपने से दूर करती कहानी और स्क्रिप्ट। कहने को दोनों बेरोज़गार, लेकिन मौज फुल।

जीवन और फिल्म के अंतर को स्पष्ट करती, एक कोशिश के रूप में देखी जा सकने वाली फिल्म।

http://www.facebook.com/saurabhkumargupta (publish this link as well this time at the end)

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