बेरोजगार हो , तो दोस्तों को फ़ोन मत करना । मेरे पोस्ट के टाइटल को पढ़ कर कुछ लोग ....आसानी से समझ जायंगे की , मै ऐसा क्यो लिख रहा हु . और जो लोग नही समझ पाए ...वो पोस्ट पढने के बाद समझ जायेंगे । जी हां , बेरोजगार हो तो अपने दोस्तों को फ़ोन मत करना । ...बेरोजगारी ऐसी बीमारी है की , रोग लगते ही सब पराये हो जाते है ...मानो बेरोजगार होने के साथ ही टी वी की बीमारी हो गई हो . रोजगार के रहते वक्त , दोस्तों को फ़ोन कीजिये ...आपका दोस्त बड़े ही चाव से फ़ोन उठा कर आप का इस्तेकबाल करेंगा ...लेकिन जैसे ही उसे पता चला की आप बेरोजगार हो गए है ...आप के मार्केट भाव में कमी आ जाएँगी ॥आपके के दोस्त को लगेगा की ,जरूर पैसा मांगने के लिए आप फ़ोन कर रहे है ..जिन दोस्तों के साथ शाम की महफिल जमती थी...अब उस मजमे में आप को नही बुलाया जाएगा ...कुछ दोस्त बोलेंगे ..की साला मुफ्त की दारू और मुर्गा खायेगा ..और जाते वक्त घर लौटने के लिए सौ रुपये भी मांगेगा । अरे भाई, मीडिया में तो हालत और भी खराब है ...मीडिया में नौकरी पाने के लिए काबिलियत की कम रेफरेंस की जरुरत ज्यादा पड़ती है . यदि रेफरेंस मजबूत है ..तो बढ़िया है ..नही तो लगे रहो , चूना लगाने में . .अब इस बात की गारंटी नही है , की आप का चूना कम काम करेंगा ।
लेकिन , ऐसे समय वे दोस्त काम आते है ..जिन्हें आप ने कभी पहले तरजीह नही दी थी ...जिसे आप हलके में लिया करते थे ...जिसको आप अक्सर गालिया दिया करते थे ..वो ही , दोस्त आप का उस वक्त सहारा बनेगा . तो रोजगार के रहते वक्त सही दोस्तों की पहचान कर लो , वरना यह मत कहना की , बताया नही था ।
अंत में, मशहूर शायर श्री सुदर्शन फाकिर की ग़ज़ल के कुछ असरार पेश कर रहा हु ...उम्मीद करता हु आप सबको पसंद आएगा ।
आदमी आदमी को क्या देगा, जो भी देगा वही ख़ुदा देगा,
मेरा कातिल ही मेरा मुनिसफ़ है, क्या मेरे हक में फ़ैसला देगा।
ज़िंदगी को करीब से देखो ,इसका चेहरा तुम्हे रुला देगा,
अंत में, मशहूर शायर श्री सुदर्शन फाकिर की ग़ज़ल के कुछ असरार पेश कर रहा हु ...उम्मीद करता हु आप सबको पसंद आएगा ।
आदमी आदमी को क्या देगा, जो भी देगा वही ख़ुदा देगा,
मेरा कातिल ही मेरा मुनिसफ़ है, क्या मेरे हक में फ़ैसला देगा।
ज़िंदगी को करीब से देखो ,इसका चेहरा तुम्हे रुला देगा,
हमसे पूछो ना दोस्ती का सिला, दुश्मनों का भी दिल हिला देगा।
इस पोस्ट को पढनेवाले यह ना समझे सारे दोस्त बुरे होते है....कुछ अच्छे होते ....लेकिन आप उन्हें कभी देख नही पाते। ऐसे दोस्त तब आते जब ...जब आप की मैयत को उठाने के लिए , चार लोग कम पड़ जाते है....और ...वे अपना काम कर ...बिना गिला शिकवा के घर लौट जाते है....
लतिकेश
मुंबई
इस पोस्ट को पढनेवाले यह ना समझे सारे दोस्त बुरे होते है....कुछ अच्छे होते ....लेकिन आप उन्हें कभी देख नही पाते। ऐसे दोस्त तब आते जब ...जब आप की मैयत को उठाने के लिए , चार लोग कम पड़ जाते है....और ...वे अपना काम कर ...बिना गिला शिकवा के घर लौट जाते है....
लतिकेश
मुंबई
19 comments:
मैं भी यहीं सोच रहा था, अच्छा है आपने व्यक्त कर दिया। धन्यवाद।
ऐसे गिरे हुए लोगों को कम से कम दोस्त कह कर उनका सम्मान मैं तो नहीं करता..
आई टी सेक्टर में भी बेरोजगारी बेतरह बढ़ी है.. और हमारे दोस्तों में जिसकी भी नकारी गई उसके बारे में हमने कभी इस तरह कि बाते नहीं कि.. और जहाँ तक बना हमने मदद भी की..
जिस दोस्ती में 'बारोजगारी' और 'बेरोजगारी' के आधार पर अन्तर हो, वह 'दोस्ती' नहीं, कुछ और होती है।
आपने 'कि' को पूरी तरह बेरारेजगार कर रखा है। उसकी अनुपस्थिति से उपजी दुर्दशा और आनन्द के अभाव को अनुभव कीजिएगा।
जिस तरह से आपने बयां किया उस तरह के दोस्तों की कमी नही .....सही कहा है आपने ....लेकिन सच्चे दोस्त हमेशा रहते हैं ....
अनिल कान्त
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
दरअसल हम सहकर्मियों और दोस्त में अंतर करना नहीं सीख पाए हैं
लतिकेश जी....वह रचना मैंने www.cavssanchar.blogspot.com पर डाल दी है आपकी फ़रमाइश पर
आपने जो कहा है, उसे मैंने बहुत दिनों तक जिया है, बेरोजगारी का दर्द मैंने महसूस किया है, और ऐसे "तथाकथित" दोस्तों से भी खूब साबका पड़ा है, लेकिन जो सच्चे दोस्त हैं वो आज भी मेरे साथ हैं, जो मेरे साथ स्कूल से हैं, बीच वाले कहाँ हैं अता पता नहीं है उनका, अच्छी तरह अभिव्यक्त किया है आपने उस दर्द को।
मैं आपकी बात से पूरी तरह असहमत नहीं, लेकिन एक पहलू और है। दोस्त जब बेरोजगार हो जाए और आप रोजगार में हों, तो आपके लिए भी हालात कम आसान नहीं होते। उसकी तकलीफ का दर्द तो होता ही है, बेबसी भी होती है उसकी मदद न कर पाने की। अक्सर आप उसकी मदद करने की स्थिति में नहीं होते और तब उसका सामना बेहद मुश्किल होता है। यह अहसास कम तकलीफदेह नहीं होता।
सही बात है...बेरोजगारों के सभी दोस्त नहीं होते.. केवल अपवाद होते हैं..
ज्यूँ ज्यूँ मुकम्मिल मेरे हालात हुए
लोग भी हमख्यालत हुए
.लगे रहो..
सुंदर
भावों की अभिव्यक्ति मन को सुकुन पहुंचाती है।
लिखते रहिए लिखने वालों की मंज़िल यही है ।
कविता,गज़ल और शेर के लिए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
मेरे द्वारा संपादित पत्रिका देखें
www.zindagilive08.blogspot.com
आर्ट के लिए देखें
www.chitrasansar.blogspot.com
apne sahi kaha mere dost,isi tarah likhate rahiye.blog ki duniya me apka swagat hai,
aapka aadesh sir mathe janab. narayan narayan
ज़िंदगी को करीब से देखो ,इसका चेहरा तुम्हे रुला देगा,
हमसे पूछो ना दोस्ती का सिला, दुश्मनों का भी दिल हिला देगा।
कटु सच्चाई है आपकी पोस्ट में. स्वागत.
सच्चे रिश्ते दिलों के जरिए बनते हैं.......हालात बदलने से रिश्ते नहीं बदला करते.
एक कड़वा सच है यह।
Badaa sahee kaha...na jaane hame kab kis cheezkaa kya silaa mil jaay...!Hotaa to ye har kiseeke saath hai...na ham apwaad naa aap...!
Bas nazariye alag, alag !
Khair, waise to asli dost kaun ye bure samaymehee pataa chalta hai...
बहुत ही गलत कहा , ऐसा मै नहीं दुसरे लोग कह सकते है !
मैं तो यही कहूँगा सरे कथन सच नहीं होते !
बहुत ही गलत कहा , ऐसा मै नहीं दुसरे लोग कह सकते है !
मैं तो यही कहूँगा सरे कथन सच नहीं होते
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