Tuesday, April 7, 2009

जूता फैकने की गलत परंपरा अपने देश में मत शुरू करो


दोस्तों ,मंगलवार को अपने ही दोस्त में से एक जरनैल सिंह ने केंद्रीय गृह मंत्री पी चिदबरम पर डेल्ही में एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान उन पर जूता फैक दिया ॥इस खबर को देख कर एक पत्रकार होने के नाते मुझे काफी दुःख हुआ । जाहिर तौर पर जो पत्रकार होंगे उनके अलावा देश के बाकि लोगो को भी जरनैल सिंह के इस कदम से दुःख हुआ होगा ..यार ,पंडित जवाहरलाल नेहरु की एक बात पढ़ी थी ..यदि अच्छी बात को भी कहने का तरीका गलत हो तो सही बात भी गलत हो जाती है ..एक भारतीय होने के नाते १९८४ के दंगे में सिख समुदाय के साथ जो कुछ हुआ ..उसे देख कर देश के सारे अच्छे लोगो को दुःख हुआ था जो इंसान थे, लेकिन अपनी बात को कहने के लिए एक पत्रकार इस तरह की हरकत करे ..अच्छा नहीं लगता ..वो भी हमारे देश ..हमारे देश में इराक का culture कैसे पनप सकता है ..हमारे देश में बड़े लोगो की हमेशा से इज्जत की जाती है ..वही एक न्यूज़ चैनल पर जरनैल सिंह के फोनों इंटरव्यू को सुन कर लगा की दिल से बन्दा ख़राब नहीं है ॥जिस जगह पर जरनैल सिंह बैठा था ..उसे देख कर लगता है ..वो चाहता थो बड़ी आसानी से चिदंबरम जी को जूता भी मार सकता था ..लेकिन उसने सिर्फ जूता फैक कर उसने अपना विरोध जताया .लेकिन इस तरह की हरकत को कही से भी जायज नहीं कहा जा सकता है ।यार ,ये अपने देश की महानता है की इस तरह की हरकत करने के बाद भी भारत i सरकार ने जरनैल सिंह को छोड़ दिया नही तो इस तरह की हरकत किसी मुस्लिम देश में करते तो उसका अंजाम क्या हो सकता था वो हम सब को पता है । यदि हम इसी तरह की हरकत करते रहे तो वे दिन दूर नहीं जब प्रेस कांफ्रेंस में जाने से पहले हमारे जूते बाहर ही खुलवा दिए जायेंगे ॥


लतिकेश

मुंबई

5 comments:

sarita argarey said...

आप क्या चाहते हैं , पंडित जवाहरलाल नेहरु की तरह हर ग़लत बात को सही अँदाज़ में करने का ढ़ोंग करें । ग़लत बातों की ओर इशारा करने का वक्त आ गया है । कब तक अपनी भावनाओं को तथाकथित सभ्यता का जामा पहनाते रहेंगे ।

Unknown said...

आपको दुख किस बात का है? कि अगली बार आपके जूते उतरवा लिये जायेंगे? या आपकी तलाशी ली जायेगी इसलिये?

Ravi Singh said...

क्यों भाई, जब पत्रकार एक शराब की बोतल के बदले अपना ईमान बेच देते हैं तब दुख नहीं होता, जब विनोद दुआ पदमश्री के लिये
बेशर्मी से घटिया हरकतें करता है, तब दुख नहीं होता, जब अखबार दो दो लाख रुपये लेकर उम्मीदवारों की खबरें छापते हैं तब दुख नहीं होता,

आज एक ईमानदार आदमी ने आम आदमी के गुस्से को हवा दी है तब दुखी हो गये?

सीबीआई के द्वारा अपने छुद्र स्वार्थों के लिये उपयोग किया जा रहा है और हमारे देश का गृहमंत्री चुपचाप अपनी मूंडी ऊपर नीचे हिलाये तो क्या किया जाय?

जब बात बात से नहीं बने वहां लात जरूरी है

जूता मारो तान के
हर इक बेईमान के

Unknown said...

जरा वीडियो को ध्यान से देखें… जरनैल सबसे आगे बैठे थे, वे चाहते तो जूता मुँह पर भी मार सकते थे… लेकिन उनका विरोध प्रतीकात्मक ही था, इसलिये हौले से उछाल भर दिया… जबकि इराक में ज़ैदी काफ़ी पीछे बैठा था… इसलिये जरनैल का तरीका भी सही है, नीयत भी…। दारु-मुर्गे-औरत पर पलने वाली आज की नई पत्रकार कौम को खामख्वाह नैतिकता का झण्डाबरदार न बतायें, न बनायें…

संकेत पाठक... said...

लातिकेश जी, आप की ये बात गलत है कि हिंदुस्तान की सरकार है, इसलिए उसे माफ़ कर दिया गया...जहाँ तक जरनैल को रिहा करने की बात है तो आप जानते है कि चुनाव नजदीक है और चिदम्बरम साहेब अपना बोट बैंक नहीं खोना चाहते...रही बात जूता मारने की तो जब इराकी पत्रकार ने जूता मारा था, तो वही हिन्दुस्तानी मीडिया उसे बहादुर पत्रकार की संघ्या दे रही थी और जरनैल को नैतिकता सिखा रही है..यह कहाँ तक जायज़ है..