Thursday, September 24, 2009

न्यूज़ चैनल के हेड अपने रिपोर्टर्स को रिचार्ज करने के लिए कौन सा गुरु मंत्र देंगे



दोस्तों , ऐसी रिपोर्ट है की , भारतीय क्रिकेट टीम के कोच ने अपने देश के क्रिकेट खिलाडियों को बेहतर खेल दिखाने के लिए खुल कर सेक्स के बारे में सोचने और फिर इसका प्रायोगिक सत्यापन करने की भी सलाह दी है .मुझे नहीं पता की भारतीय टीम के कोच की यह सलाह कितनी कारगर साबित होगी हमारे देश के .क्रिकेट खिलाडी बड़े लोग उनके लिए हर सलाह के हिसाब से सारी चीजे उपलब्ध है ...लेकिन, भैया फटेहाल पत्रकारों का क्या ...वे अपने आप को कैसे रिचार्ज करे ..कैसे वे अपने परफॉर्मेंस को बेहतर बनाये ..क्या उनके लिए चैनल के रहनुमाओ के पास कोई सलाह है ..जाहिर है ,की जो सलाह भारतीय क्रिकेट टीम के कोच ने अपने खिलाडियों को दिया है ..वे चैनल हेड अपने रिपोर्टर्स को नहीं दे सकते . और इस तरह की सलाह यदि वे देते भी है तो बेचारा पत्रकार ..... नंगा नहायेगा .क्या .. निचोड़ेगा क्या .चैनल के अन्दर काम कर रहे पत्रकारों का हाल बेहाल है ..कुछ पत्रकार .जो बॉस के नौ रत्न में शामिल होते है उनका हाल तो मस्त रहता है लेकिन जो काम करनेवाले पत्रकार है वे फटेहाल होते है . उनका हाल पालतू जानवर की तरह होता है , जिन्हें हर बात में दुम हिलानी पड़ती है ..हर वक़्त उन्हें नौकरी खोने के डर के साए के संगीनों के बीच काम करना पड़ता है .शाम को जब थका हारा वह पत्रकार ऑफिस लौटता है तो अगले दिन का डे प्लान खोजने में उसकी हालत और भी पतली हो जाती है . अब ऐसे में इन रिपोर्टर्स को रिचार्ज करने के लिए कुछ तो करना पड़ेगा .मुझे लगता है की यदि रिपोर्टर्स की अच्छी रिपोर्ट्स समय से एयर हो जाये तो वे ऐसे ही आधा रिचार्ज हो जाते है .वही उनकी सैलरी कम से कम इतनी हो की उसे किसी को बताने में शर्म महसूस ना हो तो वो फुल रिचार्ज रहेगा .और फिर आप रिपोर्टर्स से फुल टॉक टाइम यानि पूरा काम ले सकते है .मैने ,निजी तौर पर कई ऐसे युवा पत्रकारों को देखा है ..जिनमे प्रतिभा तो है ..लेकिन उन्हें मौका नहीं मिलता .वे दस हजार की नौकरी के लिए दिन में दस बार मरते है और दस बार जीते है ..घर में बैठा बूढा बाप इस उम्मीद से हर महीने पैसा भेजता है की शायद अगले महीने से बेटे की नौकरी लग जायेगी ..और उसके सर से एक बड़ा बोझ उतर जायेगा ..लेकिन इस हसरत को देखने की उम्मीद में कई पत्रकारों के पिता स्वर्ग सिधार जाते है .लेकिन भैया मेरे सोचने से क्या होगा ..सोचना तो उन्हें है जो इस दिशा में कुछ कर सकते है ..मै तो सिर्फ अपने ब्लॉग पर बकवास ही कर सकता हु .


लतिकेश


मुंबई

3 comments:

Unknown said...

आपके लेख में हमें एक चिज़ काफी पंसद आई ...कि रिपोर्टर कि ख़बर समय पर दिखे और उस मेहनती पत्रकार को इतने सैलरी मिले कि उसे दुसरों को बताने में शर्म न आये....मगर पत्रकारीता में चाटु पत्रकार ही सफल है (पैसों के मामले में)..हम जेसे कहा सफल होगे(पैसों के मामले में).....

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

भाई आपकी पोस्ट पर चिट्ठाजगत नाम का एग्रीगेटर "केवल वयस्कों के लिये" वाला चिन्ह दिखा रहा था तो हम तो ठहरे भड़ासी, देखने चले आए कि ऐसा आपने क्या लिख दिया लेकिन प्रभु आपने जो लिखा वह सही है। इसमें ऐसा कुछ नहीं है जो कि वयस्कों वाली सामग्री में आता हो।

सागर मंथन... said...

रिपोर्टर्स के लिए गुरु गैर्री जैसा को मन्त्र काम नहीं करेगा.. और ना ही ऐसा कोई चार्जर है जिससे रिपोर्टर चार्ज हो सके... खैर रिपोर्टर की व्यथा वही समझ सकता है जिसने उसको बड़ी नजदीक से देखा हो...उस दिन का इंतज़ार है जब रिपोर्टर्स के ब्रांड के लिए भी कोई चार्जर बने जाएगा..