
'काइट्स' में आम दर्शकों के लिए नहीं - पराग छापेकार
(शुक्रवार /21 मई 2010 / पराग छापेकार / मुंबई )
अस्सी के दशक का सिनेमा पेश है अब एक नये अंदाज़ मे ,जी हा 'काइट्स' भले ही आप को अन्तरराष्ट्रीय स्तर की लगे मगर उसकी आत्मा है पुरानी ।"एक दुजे के लिये "और राकेश रोशन कि अपनी हीं फ़िल्म "कोयला "जैसी फ़िल्मो का असर इस फ़िल्म पर साफ़ नजर आता है । कहानी मे कोई नयापन नही है । ऐसी ढेर सारी फ़िल्मे भारतीय दर्शक कई बार देख चुके है ।मगर फिर भी फ़िल्म अलग होती है उसकी प्रस्तुति के नये प्रभावशाली अंदाज़ से ।आधुनिक तकनीक,भव्यता और नये लोकेशन न फ़िल्म को नयापन देते है -'काइट्स' की कहानी कुछ इस तरह से है
लास वेगास में रहने वाला जे की जो (रितिक रोशन) पैसा कमाने के लिए उन लड़कियों से भी शादी कर लेता है जो ग्रीन कार्ड चाहती हैं। ऐसी ही 11 वीं शादी वह नताशा/लिंडा (बार्बरा मोरी) से करता है जो मैक्सिको से लास वेगास पैसा कमाने के लिए आई है। अरबपति और कैसिनो मालिक (कबीर बेदी) की बेटी जिना (कंगना) को जे डांस सिखाता है। जिना उस पर मर मिटती है। जे की नजर उसके पैसों पर है, इसलिए वह भी उससे प्यार का नाटक करने लगता है।उधर नताशा भी जिना के भाई टोनी (निक ब्राउन) से शादी करने के लिए तैयार हो जाती है ताकि उसकी गरीबी दूर हो सके। नताशा और जे की एक बार फिर मुलाकात होती है और उन्हें महसूस होता है कि वे एक-दूसरे को चाहने लगे हैं।
शादी के एक दिन पहले जे के साथ नताशा भाग जाती है। टोनी और उसके पिता जे-नताशा को तलाश करते हैं ताकि उनकी हत्या कर वे अपना बदला ले सके। टोनी कामयाब होता है या जे? यह फिल्म में लंबी चेजिंग के जरिये दिखाया गया है।
दोनों कैरेक्टर एक-दूसरे की भाषा नहीं जानते हैं, ।चुकी हृतिक भारतीय है और बार्बरा मक्सिकन। ।मगर कहते है की प्यार की कोई जुबान नहीं होती इसी बात को शायद निर्देशक भुनाना चाहते थे ।मगर यही बात फ़िल्म के खिलाफ़ हो जाती है क्यो की लगभग 70 फ़ीसदी फ़िल्म या तो अँग्रेज़ी मे है या मक्सिकन मे ।और इसलिये आम दर्शक इस से अपने आप को जोड कर नही देख पायेंगे ।फ़िल्म का पहला हिस्सा काफ़ी स्लो है जिस से बोरियत का एहसास भी होता है ,मगर मध्यान्तर के बाद अच्छी गति ती पकड़ती है 'काइट्स' को इंटरनेशनल लुक देने में इसकी एडिटिंग ने महत्वपूर्ण रोल अदा किया है।
रितिक रोशन हैंडसम लगे हैं। रितिक की तुलना में खूबसूरत बारबरा बड़ी लगती हैं, लेकिन उनकी कैमेस्ट्री खूब जमी है। कंगना औरकबीर बेदी के पास करने को ज्यादा कुछ नहीं था। निक ब्राउन ने तीखे तेवर दिखाए हैं। कुल मिला कर ये कहा जा सकता है कीकितेस एक शानदार फ़िल्म हो सकती थी बशर्ते उसकी पत्कथा पर और मेहनत की जाती ।एक आम दर्शक अपने आप को
ठगा सा महसूस करेगा ।
'काइट्स' की कहानी पर यदि मेहनत की जाती तो इस फिल्म की बात ही कुछ होती।
(लेखक इंटरटेनमेंट के जाने -माने टीवी रिपोर्टर है )
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