
'काईट्स'-- क्यों न देखें? - सौरभ कुमार गुप्ता
(शुक्रवार /21 मई 2010 / सौरभ कुमार गुप्ता /नोएडा )
'काईट्स 'एक फिल्म के अलावा सब कुछ है। फिल्म स्पैनिश भाषा का क्रेश कोर्स है, बेतुके संगीत की मिसाल है, कास्टिंग के नाम पर मज़ाक है और सबसे बड़ी बात दर्शकों के लिए धोखा है।
फिल्म में जब कहानी के नाम पर कुछ है ही नहीं तो उसका ज़िक्र करना भी बेकार होगा। कहानी केवल इतनी थी-- एक था राजा, एक थी रानी। दोनों मर गए खत्म कहानी।
फिल्म की हिरोईन बारबरा लगभग पूरे समय स्पैनिश बोलती है और कितनी ही जगह सबटाईटल नहीं हैं। दर्शक को यह शुरू में ही बता दिया जाता है कि हीरो और हिरोईन एक दूसरे की भाषा नहीं समझते और प्यार की कोई भाषा नहीं होती। अब ऐसा तो किसी ने कल्पना ही नहीं की होगी कि इस फिल्म में कितनी ही जगह सबटाईटल नहीं होंगे। ईमोशनल सीन्स में एक दूसरे की भाषा न समझने वाले हीरो हिरोईन एक दूसरे को अपनी दुख भरी दास्तान सुनाते हैं और रोते हैं। अब जब वो आपस में ही नहीं समझ रहे तो दर्शक का खुद को बेवकूफ समझना लाज़मी है। आखिर गलती उसकी है कि वह फिल्म देखने क्यों आया और अगर आया है तो स्पैनिश सीख कर क्यों नहीं आया। सच बात तो यह है कि इन इमोशनल सीन्स को देखकर हंसी ज्यादा आती है।
निर्माता निर्देशक यह भूल जाते हैं कि वह 2010 में जी रहे हैं और घोर पाईरेसी के बाद भी अगर कोई फिल्म देखने आ रहा है तो उसे धोखा देना खुद को बेवकूफ साबित करने जैसा होगा।
मेरा मानना है कि फिल्म की मेकिंग, फिल्म से ज्यादा बेहतर थी। रितिक रोशन को समझदार मानने वाला दर्शक फिल्म की टिकट खरीदने के बाद पैसों के साथ साथ, अपनी इस राय से भी हाथ धो बैठेगा। किसी भी बड़ी फिल्म की रिलीज़ के वक्त लोगों के अंदर सिर्फ इतनी जिज्ञासा होती है कि फिल्म कैसी है? उसे देखने जाएं या नहीं?
अगर आप ग्रुप में जा रहे हैं और आपका सेंस ऑफ ह्यूमर अच्छा है तो उम्मीद है कि आप थ्री इडियट्स से भी ज्यादा मनोरंजन बटोरेंगे। फिल्म में डायलॉग और कपड़ों पर पैसों का इस्तेमाल करने को गैरज़रूरी समझा गया है। कहानी को फिल्म का हिस्सा न मानते हुए निर्दोक ने ज्यादा ध्यान नई सी लगने वाली पुरानी गाड़ियों को हवा में उड़ाने पर दिया है। अब उन्हें कौन समझाए कि ऐसा एक्शन तो हम दशको से देखते आ रहे हैं। अब ये गाड़ियां आप भारत में उड़ाए या मैक्सिको में, दर्शक को क्या फर्क पड़ता है।
फिल्म की शुरूआत में आप का परिचय रितिक से एक डांस टीचर के रूप में होता है और इस बात को रितिक के ही एक आईटम नंबर टाईप सीक्वेंस में समेट कर रख दिया गया है। मेरा मानना है कि अपने दोस्तों को इस फिल्म से दूर रखने में आपको उनकी पूरी मदद करनी होगी। गर्मी के मौसम में काईट्स देखने से बेहतर होगा किसी भी फिज़ूल के काम में अपना टाईम वेस्ट कर लें। काईट्स पर पैसे खर्च करने को फिज़ूलखर्च की श्रेणी में रखा जाए। काईट्स की टिकट खरीदने से बेहतर है गिरती हुई शेयर मार्केट में पैसा लगाना। आने वाले दिनों कॉमेडी सकर्स जैसे किसी शो में काईट्स की मिमिकरी देख कर आप लोटपोट हों ऐसा पूरी तरह मुमकिन है।
बारबरा(बोर बोर) मोरी को देखकर बोरियत, उनके बिना सबटाईटल वाले डायलॉग्स से सर में दर्द और राकेश रोशन और रितिक की इस बेतुकी पेशकश को देखकर हैरत होती है। कुछ लोगों ने फिल्म के बाद यहां तक प्रतिक्रिया दी कि रोशन परिवार पर तो जुर्माना ठोका जाना चाहिए।
उम्मीद है कि फिल्म कुछ ही हफ्तों में टीवी पर दिखेगी और टीवी पर भी समय नष्ट न करने की चेतावनी इसी रिव्यू में दी जाती है।
(लेखक नोएडा में युवा पत्रकार है और फिल्मों पर काफी अच्छी पकड़ रखते हैं . इस रिव्यू को लेकर आप अपनी प्रतिक्रिया mediamunch@gmail.com पर भेज सकते हैं . )
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