(शनिवार /08 मई 2010 / इंदौर /मीडिया मंच )
इंदौर प्रेस क्लब द्वारा आयोजित भाषाई पत्रकारिता महोत्सव के दौरान १ मई को 'खबरों पर सवार बाज़ार ' विषय पर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया . इस परिचर्चा में देश के कई जाने -माने पत्रकारों ने भाग लिया .
परिचर्चा की शुरुआत हिंदुस्तान टाइम्स के राजनैतिक संपादक विनोद शर्मा ने किया .
अख़बार को टॉफी की तरह बेचना चाहते हैं
विनोद शर्मा ने अपने संबोधन में आज की पत्रकारिता पर बाज़ार के हावी होने पर अपनी चिंता जताई . उन्होंने कहा की आज के पब्लिशर अख़बार को टॉफी की तरह बेचना चाहते हैं . बूढी घोड़ी को लाल लगाम लगाकर बेचना चाहते हैं . उन्होंने देश के उप-राष्ट्रपति हामिद अंसारी द्वारा पत्रकारिता के बारें में दिए गए एक स्टेटमेंट के बारें में बताया . जिसमें हामिद अंसारी ने कहा था की यदि देश में कोई मुनाफ़ाखोर पिल्लर है तो वो देश का चौथा पिलर है . अब आप अंदाज़ा लगा सकते हैं की हमारी पत्रकारिता के बारें में आम लोगों के अलावा बड़े लोगों की भी क्या सोच है .
उन्होंने इस मौके पर फ़िल्म 'शोला और शबनम' के एक गीत की कुछ पक्तियों को पढ़ कर सुनाया ..
जाने क्या ढूंढ़ती रहती है आखें मुझमें
राख़ के ढेर में अब शोला है ना चिंगारी है .
उन्होंने इस गीत के मतलब को पत्रकारिता से जोड़ते हुए कहा की आज का पाठक अखबार में ख़बर ढूंढ़ता है लेकिन उसे ख़बर नहीं मिल रही है .
लेकिन उन्होंने ' द हिन्दू ' अख़बार की जमकर तारीफ की . उन्होंने कहा की अगर कोई अपने पीचडी की डिग्री में किसी अखबार का उल्लेख करना चाहता है तो वो सिर्फ 'द हिन्दू' अखबार हो सकता है . उन्होंने कहा की एक ज़माना था की जब प्रधानमंत्री के सचिव , महान पत्रकार गिरिलाल जैन के पास ब्रीफ करने के लिए आते थे लेकिन अब सब कुछ बदल गया हैं.
दामू का कातिल कौन
इस परिचर्चा में भाग लेते हुए 'लोकमत' नागपुर के कार्यकारी संपादक जयशंकर गुप्त ने ख़बरों पर बाज़ार के हावी होने पर अपनी बेबाक राय दी . उन्होंने कहा ख़बरों पर बाज़ार के हावी होना पत्रकारिता के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं . इस मौके पर उन्होंने ' राजनीति में विचारधारा का संकट ' विषय पर आयोजित नेशनल टॉक शो में भाग लेने आयें बीजेपी नेता मुरली मनोहर जोशी द्वारा दिए गएँ 'बोल - बचन 'की जमकर खिचाई की . उन्होंने बताया की एक बार उन्होंने मुरली मनोहर जोशी को लेकर एक स्टोरी की थी . जिसमें उन्होंने बताया था की किस तरह से बिना पढ़ायें जोशी जी यूनिवर्सिटी से अपना वेतन ले रहे थे . इस स्टोरी को करने के बाद जब वे अपने संपादक राजेंद्र माथुर के पास गएँ तो उन्होंने कहा की इस स्टोरी को प्रकाशित करने से पहेल वे एक बार जोशी जी से बात कर ले. उन्होंने राजेंद्र माथुर जी के आदेश पर जोशी जी से संपर्क साधने की पूरी कोशिश की लेकिन वे कामयाब नहीं हुए . तब राजेंद्र माथुर जी ने उन्हें सुझाव दिया की वे जोशी जी के नाम एक रजिस्ट्री लेटर लिखें . लेकिन जोशी जी ने उस लेटर का भी जवाब नहीं दिया . तब राजेंद्र माथुर जी ने उस ख़बर को लीड बनाकर प्रकाशित कर दी . ख़बर के प्रकाशित होते ही हंगामा हुआ . बात हाईकमान तक पहुंची . नौबत नौकरी के जाने तक की आ गयी . लेकिन उस वक़्त राजेंद्र माथुर जी ने बताया की तुम्हारी नौकरी इसलिए बच गयी क्योकि तुमने जोशी जी से हरसंभव संपर्क करने की कोशिश की .
वहीँ उन्होंने अपने संबोधन के दौरान टीवी न्यूज़ चैनल के कंटेंट को लेकर भी खरी -खोटी सुनाई . उन्होंने एक टीवी न्यूज़ चैनल द्वारा एक लड़की को देह - व्यापर के धंदे से मुक्त कराये जाने की स्टोरी को दिखाए जाने का जिक्र किया. उन्होंने कहा की उक्त टीवी न्यूज़ चैनल ने उस लड़की की स्टोरी को ' दामू की दास्तान ' नाम से काफी जोर -शोर से दिखाया . उसके कुछ महीनों के बाद वे एक सेमिनार में भाग लेने के लिए दार्जलिंग गए थे . वहां पर एक शख्स ने उन्हें बताया की दामू नाम की उस लड़की ने ख़ुदकुशी कर ली है . दरअसल टीवी न्यूज़ चैनल पर वो स्टोरी दिखाए जाने के बाद उसके इलाके के रहनेवाले लोगों ने भी उस स्टोरी को देखा . बाद में जब वह ट्रेन से अपने घर लौट रही थी तो रास्ते में कई लोगों ने उसे दामू नाम से पुकारा . इस पुरे प्रकरण से वह इतना दुखी हुई कि उसने आत्महत्या कर ली .
इस पुरे वाक्ये को बताते हुए जयशंकर गुप्त खुद भी भावुक हो गएँ . उन्होंने कहा की आखिर दामू की मौत का जिम्मेदार कौन है . उन्होंने आरुषि हत्याकांड को लेकर भी टीवी न्यूज़ चैनल्स द्वारा लिए गएँ स्टेंड की तीखी आलोचना की . उन्होंने कहा की किसी भी मामलें में फ़ैसला सुनाने का अधिकार मीडिया को नहीं है .
' देशोनती ' के प्रधान संपादक प्रकाश पोहरे ने टीवी न्यूज़ चैनल्स के कारोबार में बिल्डरों के आने पर चिंता जताई . उन्होंने कहा की अपने हित को साधने के लिए कई बिल्डर्स ने इन दिनों टीवी न्यूज़ चैनल्स खोल लिया है . इस तरह के चैनल खोल कर वे सिर्फ अपना फ़ायदा देख रहें हैं ..उन्हें पत्रकारिता से कोई मतलब नहीं है .
वहीँ सिनिअर जर्नलिस्ट रामशरण जोशी ने हाल के वर्षों में पेड न्यूज़ के बढ़ते चलन पर चिंता जताई . उन्होंने कहा की पेड न्यूज़ लोकतंत्र के लिए एक बड़ा ख़तरा हैं . उन्होंने कई लोगों द्वारा दी जा रही उस दलील को भी खारिज़ कर दिया जिसमें कहा जाता है की मीडिया वही दिखाती है जो लोगों को पसंद होता है .उन्होंने कहा की यह सही नहीं है . दरअसल मीडिया जो दिखाती है , वहीँ लोग देखते हैं . उन्होंने कहा की आजकल हर टीवी न्यूज़ चैनल्स पर एक ही फॉर्मेट में न्यूज़ दिखाया जाता है. उन्होंने न्यूज़ दिखाने के क्रम को लेकर भी टीवी न्यूज़ चैनल्स की आलोचना की . उन्होंने कहा की आप पहली खबर में विदर्भ में किसानों द्वारा की जा रही आत्महत्या की ख़बर दिखाते हैं और उसके तुरंत बाद आइटम गर्ल राखी सावंत की ख़बर दिखाते हैं . ऐसे में किसानों की आत्महत्या की ख़बर का जो इम्पैक्ट होता है वह तुरंत समाप्त हो जाता है .
उन्होंने कहा की आजकल अख़बारों में भूख और असंतोष की ख़बरें तीसरे पेज पर चली गयी है वहीँ ब्यूटी और ग्लेमैर की ख़बरें पहले पेज पर आ गयी . उन्होंने कहा की आजकल के पत्रकारों में कई चीजों का अभाव होता है .वे कई ख़बरों को लेकर संवेदनशील नहीं होते हैं . उन्होंने कहा की उनमें स्किल्स के अलावा राजनैतिक और आर्थिक विषयों की जानकारी का भी अभाव होता है .
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