गुरूवार की सुबह मुझे हल्का बुखार लग रहा था और शरीर में कमजोरी भी महसूस हो रही थी। कार चलाकर दफ्तर जाने का मूड नहीं था इसलिये मैं टैक्सी से महालक्ष्मी में अपने दफ्तर पहुंचा। शाम को मुझे नानी से मिलने दक्षिण मुंबई के बॉम्बे अस्पताल जाना था, जहां वे मोतीबिंदू के ऑपरेशन के लिये भर्ती हुईं थीं। मैने महालक्ष्मी से बॉम्बे अस्पताल जाने के लिये टैक्सी पकडी। टैक्सी वाला एक बुजुर्ग शख्श था।चेहरे पर हल्की सफेद दाढी उग आई थी। तेज बारिश के कारण टैक्सी काफी धीमी रफ्तार से आगे बढ रही थी। उस टैक्सी वाले ने मुझसे पूछा- साब 2 दिन टैक्सी हडताल पर थी तो पब्लिक को बहुत तकलीफ हुई होगी न?
टैक्सीवाले का सवाल एक दिन पहले हुई टैक्सी की हडताल से था। टैक्सी वाले सीएनजी की कीमत बढने की वजह से टैक्सी का किराया बढाने की मांग को लेकर हडताल पर उतरे थे। बाद में जब सरकार ने किराया बढाने का ऐलान किया तो उन्होने अपनी हडताल वापस ली।
टैक्सी वाले के सवाल पर मैने उससे उलटा सवाल पूछा- तकलीफ तो हुई थी। तुम किस यूनियन के हो...क्वाड्रोस के? शिवसेना के या किसी दूसरी यूनियन के?
टैक्सी ड्राईवर-हम तो सबके हैं और किसी के भी नहीं..सब यूनियन वाले चोर हैं..सब को अपनी फिक्र पडी है..हम लोग तो रोज कमाने खाने वाले आदमी हैं भाई। वो क्या हैं न कि वो एक मंत्री के बेटे (महाराष्ट्र के मंत्री नारायण राणे के बेटे नितेश राणे के संगठन स्वाभिमान) के आदमी लोग ने गाडियों की तोडमताडी शुरू कर दी थी न.. इसके लिये घबराकर बाकी सब टैक्सी वालों ने भी अपनी गाडी खडी कर दी। मैं तो भाडे की(किराये पर) गाडी चलाता हूं। दूसरे की गाडी का नुकसान होता तो अपने को ही जेब से भरना पडता न...उसलिये मैने गाडी खडी कर दी और मालिक को फोन करके बता दिया। एक-दो दिन नही कमाना गाडी तुडवाने से बेहतर है।
मैं-हां ये बात तो सही है। आप लोगों के साथ तो जबरदस्ती हो रही थी।
टैक्सी ड्राईवर-टैक्सी वालों पर तो हर कोई जुल्म करता है भाई। यूनियन वाले से लेकर सिग्नल पर खडे पुलिस वाले तक...सरकार भी तो जुल्म कर रही है। अभी नया रूल बना दिया कि 25 साल पुरानी गाडी निकाल कर नई गाडी खरीदों...क्या जरूरत है इसकी..अभी हमको हमारी पुरानी फिएट बेचकर नई सेंट्रो-वैंट्रो या फिर मारूति की गाडियां खरीदनी पड रहीं हैं..ये भी कोई बात है...आजकल की ये गाडियां मजबूत नहीं हैं...गाडियां तो फिएट और एंबेसेडर जैसी ही होनी चाहिये...एकदम मजबूत...पुराने जमाने में अंडरवर्लड के बडे बडे भाई लोग भी इन्ही गाडियों में फिरते थे।
मैं - आपकी बात सही है। आपको मालूम है कि दाऊद ने अपने गुनाहों के करियर का पहला गुनाह भी काले रंग की एक एंबैसेडर कार से किया था। मसजिद बंदर इलाके में एक ज्वेलर को लूटा था उसने। वो भी जब मुंबई में था तो फिएट और एंबैसेडर में ही घूमा करता था।
अंडरवर्लड के बारे में मुझसे ये जानकारी सुनकर वो चौंका, लेकिन अपने हाव भाव के छुपाने की कोशिश करते हुए उसने कहा- हां मालूम है न भाई। इन सब भाई लोगों को मैने काफी करीब से देखा है। मैं उनके इलाके में ही पला बढा हूं।
मैं-कौन से इलाके में रहते हैं आप?
टैक्सी ड्राईवर- अभी तो मैं कुर्ला में रहता हूं लेकिन मेरा बचपन कमाठीपुरा में बीता (कमाठीपुरा मुंबई का रेड लाईट इलाका है और दाऊद और पठान गिरोहों के अड्डों के काफी करीब है।) हमारे अब्बा का तंबाकू कि डिबिया बनाने का काम था। हम घर में ही वो काम करते थे।
मैं-फिर तो आपने दाऊद को भी बचपन में देखा होगा?
टैक्सी ड्राईवर- मैने सबको देखा है। दाऊद भाई को, अमीरभाई को (पठान गैंग का अमीरजादा), आलमभाई को (पठान गैंग का आलमजेब) और समदभाई को (पठान गैंग का समद खान) मैं तो नागपाडा के उसी अहमद सैलर स्कूल में पढा हूं जिसमें दाऊदभाई ने पढाई की है। दाऊद भाई ने दसवीं तक पढाई की थी और मैने सातवीं तक..वो मेरे से उम्र में थोडा बडे थे...अभी मैं 53 साल का हूं और उनकी उम्र् 57-58 होगी।
मुझे इस टैक्सीवाले की बातें काफी दिलचस्प लगीं..लेकिन वो सच बोल रहा है क्या ये परखने के लिये मैने अपने मोबाईल में स्टोर की हुई एक पुरानी ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीर उसे दिखाई। इस तस्वीर में युवा दाऊद अपने पठान गिरोह के दुश्मनों अमीरजादा, आलमजेब और समद खान के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खडा दिख रहा है। चंद सालों बाद दाऊद ने इन तीनों की हत्या करवा दी।
टैक्सीवाले ने टैक्सी एक सडक किनारे रोकी और एक एक कर तस्वीर में मौजूद हर इंसान का नाम बताने लगा...य़े आलमभाई हैं..ये अमीरभाई हैं..ये समदभाई हैं..मुझे आश्चर्य हुआ कि उसने सभी के नाम बिलकुल सही बताये थे।
टैक्सी ड्राईवर- साब ये फोटो आलमभाई की बहन की शादी की है। नूरबाग में रिशेप्शन हुआ था। मैं भी मौजूद था जब ये फोटो खींची जा रही थी। आलम भाई बडे डॉन थे लेकिन उनके बात करने की अदा क्या प्यारी थी..किसी से पानी भी मांगते थे तो बडे अदब से। क्या वक्त था वो भी...ये सभी दोस्त थे..लेकिन पैसों को लेकर आपस में ही खून खराबा कर डाला...इनकी वजह से ही आज हिसाब किताब काफिरों के हाथ में जा रहा है....अभी तो सब भाई लोग खत्म हो गये। उस वक्त क्या वट था उनका...
अब तक की बातचीत से उस टैक्सी वाले को भ्रम हो गया था कि मैं अंडरवर्लड का आदमी हूं और मुसलिम भी हूं फिर भी उसने जब मेरा नाम पूछा तो मैने उसे बताया कि मेरा नाम उमर है। मुझे लगा कि शायद अगर मैने अपना असली नाम बता दिया तो वो खुलकर मुझसे बात नहीं कर पायेगा। मेरा नाम बताने पर उसे पक्का यकीन हो गया कि मैं मुसलिम ही हूं तो वो और बेफिक्र होकर मुझसे बात करने लगा।
टैक्सी ड्राईवर-भाईजान मैं तो दाऊदभाई को मानता हूं। आज दाऊदभाई की वजह से ही हिंदुस्तान में मुसलमान शान से जी पा रहा है। अगर दाऊद भाई ने 1993 में बम नहीं फोडे होते तो अपने लोगों का जीना मुश्किल हो जाता। मुसलमानों का रास्ते पर निकलना भारी हो जाता भाई।
मैने उसके हां में हां मिलाई लेकिन कहा – दाऊदभाई भी आज कहां सुकून से जी रहे हैं। उनके गैंग के कितने लोग तो पुलिस की गोलियों से मारे गये।
टैक्सी ड्राईवर-आप सही फरमा रहे हैं भाई। अभी वो जमाना गया...अब तो पुलिस किसी के नाम पर 2 N.C.( अदखलपात्र गुनाह) होने के बाद तीसरी बार में सीधा ठोंक डालती है। अभी अंडरवर्लड में कोई दम नहीं है। एक जमाने में जिगर वाले भाईलोग हुआ करते थे। वो पुलिस से कुत्ते जैसा सलूक करते थे। पुलिस भी उनसे डरती थी।आज तो पुलिस ही भाई है।
मैं-चचा आप इतने सारे भाई लोगों के बीच पले बढे हो...कभी इन लोग के लिये काम नहीं किया?
टैक्सी ड्राईवर-भाई इसके लिये मैं अपने वालिद का शुक्रगुजार हूं। उन्होने मेरे को कभी इन लोग के बीच घुसने नहीं दिये। मुझपर बचपन में उनकी कडी नजर रही। आज मैं टैक्सी चला के खुश हूं। अपने बीवी बच्चों के साथ हूं। मैंने दाऊद के पिता इब्राहिम चचा का जनाजा उठते हुए देखा है। मुझे बडा बुरा लगा।हर बाप चाहता है कि उसके जनाजे को बेटे का कंधा नसीब हो...दाऊदभाई आज करोडों में खेल रहे हैं लेकिन क्या वो अपने बाप को ये खुशी दे पाये? खैर जो हो गया सो हो गया...खुदा उनके गुनाहों को माफ करे और उनको बरकत दे हम तो यही दुआ करेंगे।
इस बीच मेरी मंजिल आ गई थी और मैं किराया चुका कर अस्पताल की सीढियां चढने लगा..लेकिन मेरे दिमाग में अभी भी टैक्सी वाला का वो वाक्य गूंज रहा था-दाऊदभाई की वजह से हिंदुस्तान में मुसलमान शान से जी पा रहा है। मेरे मन में ये सवाल आया कि क्या मुंबई के सभी निचले वर्ग के कम पढे लिखे मुसलिम दाऊद के प्रति ऐसा ही भाव रखते हैं?
(लेखक मुंबई के जाने -माने पत्रकार हैं .)


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