Saturday, June 19, 2010

'रावण ' का review --पराग छापेकर



(शनिवार /19 जून 2010 / पराग छापेकर /मुंबई )
आह मणी सर . कितना इंतज़ार था आप की फिल्म का . सचमुच सिनेमा के मणी है आप . रावण जब से घोषित हुई थी तब से ना सिर्फ सिनेमा जगत बल्कि करोड़ो सिनेप्रेमियो को इस फिल्म का इंतज़ार था.पर उफ्फ... ये क्या किया आपने.कोई मसाला फिल्मो का ऐसा वैसा निर्देशक होता तो शायद इतना ठगा मह्सूस नहीं होता.

मेरी आपत्तिया –
1) इंटरवेल तक स्टॉरी का कोई अता पता नही था. एक लम्बी बोरिंग चेसिंग के शोट्स आखिर कब तक दर्शको को बान्धे रख सकती है? .
2) परिवेश चुना गया साउथ का और बोली भोजपुरी . गाने मे राजस्थानी .ये कैसी खिचड़ी है?

3) बेचारे रावण से ..इतनी ओवर एक्टिग कराने की क्या जरुरत थी,जब की बाकी सारे पात्र स्वाभाविक अभिनय करते नज़र आये. अभिषेक का अभिनय स्टाईल ही नेचुरल है जिसका बखुबी इस्तेमाल किया गया था 'गुरु' मे. लेकिन लाउड अभिनय को 'रावण ' निभा नही पाये.
4)राम का चरित्र ऐसा बुना गया है की राम हीं खलनायक लगते है . इस पात्र को राम की तरह आर्द्श बनाया ही नही गया . और जब नायक ही नायक नही तो फिर खलनायक बड़ा कैसे स्थापित होगा.
5) संगीत के नाम पर ए. आर. रहमानन का निशाना इस बार चूक गया . एकाध गीत छोड़ दिया जाये तो कोई भी गीत अपना प्रभाव छोड़ने में असफल रही है .
6)संवादों पर ज्यादा मेहनत करने की जरुरत ही नही समझी गयी. किरदारों रो के हिसाब से सम्वाद होना चाहिये ये बात एकदम सही है मगर वो चलताउ नही हो सकते .

क्या अच्छा लगा-
1) महान फिल्ममेकर मणी रत्नम का जादुई संसार .इस स्वंप्न मे आप अपने ही देश के उस खूबसुरत हिस्से से वाकिफ होंगे जैसे किसी सपने मे जी रहे हो. पिछ्ले दिनो आई जेम्स केमरून की फिल्म 'अवतार 'को टक्कर देते विजुयल्स भव्य नजारे प्रस्तुत करते हैं .
2) संतोश सिवान और मणी कन्दन की अजीमोश्शान सिनेमटॉग्राफी
3) मुश्कील हालातो मे अभिनय करते एश और अभी जैसे सितारे

और सबसे बडी ख़ासियत की इतने बडे सपने को देखने का विज़न और माद्दा
.ये माद्दा चन्द ही निर्देशको मे है. मै एक बार फिर कहना ना चाहुंगा की ये फिल्म मणी रत्नम जैसे निर्देशक की है जो अपने आप मे एक इंस्टीट्य़ुट है इसलिये हम ठगा महसूस करते है. एक आर्दश जब अपने स्थापित प्रतिमान से गिरता है तो दुख होता है.यही मणी सर के साथ हो रहा है.
अंन्तत; यही कहाँ जा सकता है की 'रावण' जरुर देखना चाहिये . इसलिए नही की यह एक महान फिल्ममेकर की महान फिल्म है बल्कि इसलिए की यह एक महान फिल्ममेकर का बड़ा ही खूबसूरत मगर टूटा हुआ सपना है.

(लेखक मुंबई में एक नेशनल चैनल के इंटरमेंट हेड है और मीडिया मंच के लिए ख़ास तौर से फिल्मों की समीक्षा करते हैं . )

No comments: