
रावण-- देखें या गोली मारें- सौरभ कुमार गुप्ता
(शनिवार /19 जून 2010 / सौरभ कुमार गुप्ता /नई दिल्ली )
जब से रावण देखकर लौटा हूं, सोच रहा हूं कि मैं किस तरह की फिल्म देख कर आया हूं? क्या मैं एक ऐसी फिल्म देखकर आया हूं जिसका रामायण या आज के समाज से दूर दूर तक कोई सरोकार नहीं था? क्या मैं ऐसी फिल्म देखकर आया हूं जिसमें हर किरदार आपस में एक दूसरे से बेहतर चिल्लाने का कांप्टीशन कर रहा था? क्या मैंने ऐसी फिल्म देख ली जिसमें छायांकन, लोकेशन वालों को तो काम के पूरे पैसे मिले पर संवाद एवं पटकथा लिखने वाले की पेमेंट आधी कर दी गई? क्या फिल्म के निर्दोशक की तबीयत बीच में खराब हो गई थी जिस कारण सारी फिल्म ऐसा लगा मानो संतोष सिवन ने ही बनाई हो? क्या अभिषेक के भीतर फिल्म में रह-रहकर परिंदा फिल्म के नाना पाटेकर का भूत घुस आता था?
इन सब सवालों का निचोड़ यह निकला कि रावण देखने जाने का अर्थ होगा एक ऐसी फिल्म के लिए तैयार होकर जाना जिसमें कला पूरी है लेकिन कलाकारी थोड़ी। तो फिल्म तो आप देख सकते हैं क्योंकि ऐश-अभि की जोड़ी को फिल्म गुरू के बाद यहीं देखने का मौका मिलेगा। ऐशवर्य राय को जितनी खूबसूरती और सहजता से अब तक मणि रत्नम दिखा पाए हैं वैसा भायद ही कोई कर पाया हो। संतोष सिवन के लिए तालियां बजाने का मन करे तो बजा सकते हैं।
रावण पूरी तरह एक भारतीय फिल्म हैं। फिल्म पर भारत के दृश्य हावी हैं। फिल्म रोज़ा से छाप छोड़ने वाले मणि रत्नम कई दृश्यों में आपको उसी तरह के फिल्मांकन की याद दिलाते हैं बस इस बार यहां परिवेश बदला हुआ लगेगा। अगर मैं कहूं कि यह एक फिल्म आपको कई पिछली और आपकी देखी हुई फिल्मों की आपको याद दिलाएगी तो गलत न होगा। आपको रोज़ा, दिल से, ओमकारा, बॉम्बे और अग्यात आदि फिल्मों की कई छवियां इसमें देखने को मिलेंगी।
एंटी हीरो के रूप में मौजूद अभिषेक कभी रावण में अपने किरदार बीरा को उस स्तर तक नहीं ले जा पाते जहां दर्शक उनकी जीत और हीरो की हार की कामना करना शुरू कर दे। अभिषेक न तो कभी रावण ही बन पाए, न ही वह यह पहचान पाए कि बीरा के किरदार में उनको करना क्या है, न वो बीरा को ओमकारा का सैफ या अजय देवगन बना पाए, वो दरअसल अभिषेक बच्चन और नाना पाटेकर की छवि में ही उलझकर रह गए। अभिषेक फिल्म गुरू में अभिषेक बच्चन बाद में और गुरू भाई के रूप में पहले नज़र आते थे। तो यानि बारिश के कारण फिसलन की वजह से वो अपने किरदार में ही नहीं उतर पाए। अपना बीरा न तो डाकू बन पाया, न लुटेरा, न नक्सली और ना ही आतंकवादी
कुछ अच्छे पहलुओं का जिक्र किया जाना बेहद ज़रूरी है। लोकेशन, कैमरा, फिल्मांकन, छायांकन, गीत-संगीत, ऐश्वर्या की अदाकारी सब बेजोड़ है। लेकिन फिल्म में कई सिरे ऐसे भी थे जिन्हें मणि रत्नम जोड़ने में नाकाम रहे। शायद ऐसा इसलिए कि रामायण या ऐसे किसी अन्य ग्रंथ को ढाई घंटे की फिल्म में अपने मुताबिक स्क्रीनप्ले में तब्दील करना उतना आसान काम नहीं। मणि रत्नम जैसा महारथी भी इस काम में फिट नहीं बैठे।
वैसे तो रावण के पात्र को रामायण से अलग करना मुमकिन नहीं लेकिन फिल्म रावण को अगर रामायण से अलग कर देखें तो फिल्म को समझने में आसानी हो जाएगी। लाल माटी इलाके का रखवाला बीरा है। यह लाल माटी हिंदुस्तान के किसी भी नक्सल प्रभावित क्षेत्र से मेल खातेखाते चूक जाती है। फिल्म के पहले ही सीन में बीरा बने अभिषेक तीन पुलिस वालों को पकड़ जिंदा जला देते हैं, दूसरे ही सीन में रागिनी बनी ऐवर्य किडनैप हो जाती हैं और तीसरे ही सीन में राम रूपी विक्रम लांच हो जाते हैं। इतनी जल्दबाज़ी में दर्शक को सब बता देने के बाद कहानी की रफतार में ब्रेक से लग जाते हैं और फिल्म के पहला बाकी हाफ न जाने कैसे बीत जाता है।
पहला हाफ कैसे बीत गया इसका असर पैदा होता है फिल्म के बेमिसाल छायांकन, लोकेशन के इफैक्ट से। अगर आप ऐश्वर्या के फैन नहीं भी हैं तो भी फिल्म में वो इतनी बेहतरीन और अलग दिखती हैं कि तारीफ करना ज़रूरी हो जाता है। मैं यहां जानबूझकर अभिषेक का जिक्र न करना ही बेहतर समझता हूं। तो पूरी फिल्म में एक चीज़ जो बांधकर रखती है वो है ऐश्वर्या राय।
रामायण को बीच में न लाकर इसी कहानी और इन्हीं किरदारों के साथ एक मज़बूत फिल्म बनाना मुमकिन था पर लगता है मणि सर इस बार अपने ही जाल में फंस गए।
अच्छा हां, मुझे याद आया कि अपना रावण यानि बीरा एक भोजपुरी रावण है। मदद के लिए रवि किशन को मणि रत्नम की टीम में जगह मिली है। फिल्म में गोविंदा बजरंग बली की भूमिका में हैं जो गंभीरता कम हास्य ज्यादा उत्पन्न करते हैं। मणि रत्नम ने इन्हें हिंदी हार्टलैंड में फिल्म की बिक्री के लिए ज़रूरी समझा।
अगर आपको याद हो तो नब्बे के दशक में फिल्मों का एक ऐसा दौर आया था जब लगभग हर फिल्म में हीरो की बहन का रेप होता था और वो विलेन से बदला लेता था। इसके अलावा फिल्म में एक गाना बारिश वाला भी ज़रूर होता था। तो लौट आया है गुज़रा ज़माना और 2010 में आपके सामने फिल्म रावण पेश की जाती है इन दोनों पुराने फॉर्मूले के साथ। बारिश से भरपूर सीन, हीरो की बहन का गैंगरेप, शास्त्रीय डांस करने वाली हीरोईन, उसका पुलिस वाला पति, हीरोईन को किडनैप करने के बाद उसको दिल देने वाला अपना देहाती विलेन बीरा.. रा रा रा रा ....।
गर्मी की छुट्टियों में व्यस्त होने के कारण कहीं न जा पा रहे हों, मानसून की बारिश मन में उमंग जगाती हो, केरल की हरियाली, समुद्र को कभी न महसूस कर पाएं हों और इस सब के बीच थोड़ा गीतसंगीत, चीखना-चिल्लाना, एक सुंदर हीरोईन, हल्कीफुल्की कहानी में रूचि हो तो रावण देख सकते हैं।
(लेखक नई दिल्ली में एक राष्ट्रीय सैटलाइट न्यूज़ चैनल में कार्यरत है और मीडिया मंच के लिए ख़ास तौर से फ़िल्मों की समीक्षा करते हैं . )
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