
झारखण्ड में 'भास्कर 'का बल प्रयोग
(सोमवार /23 अगस्त 2010 / रांची /मीडिया मंच )
झारखण्ड में अपना वर्चस्व कायम करने के लिए समाचारपत्रों समूहों के बीच चल रही लड़ाई अब खूनी रंग का रूप ले रही है . दैनिक भास्कर, झारखण्ड में अपनी बादशाहत कायम करने के लिए न्यूज़ पेपर के कंटेंट को बेहतर बनाने की जगह गुंडों का सहारा ले रही है . आखिर भास्कर को झारखण्ड में नंबर वन बनने की इतनी जल्दी क्यों है . ऐसी रिपोर्ट है की अपनें समाचारपत्र के वितरण के लिए भास्कर के लोग हॉकरों के साथ मारपीट कर रहें हैं . भास्कर के लोगों को यह समझ लेने चाहिए की हॉकरों को डरा -धमका कर वे अपनी दुकान रांची में नहीं चला सकते . यदि उन्हें कोई समस्या हो तो वे हॉकरों के नेताओं से बात कर इस मामलें को सुलझा सकते हैं . लेकिन इस तरह डंडे के बल अख़बार को बेचना का कहाँ का इन्साफ है . क्या उन्हें नहीं पता की बेचारा हॉकर छोटे से कमीशन की लालच में दिन भर अपनी सायकल चला कर से लोगों तक उनका अखबार पहुंचाते है . उनकी मेहनत के बल पर आज भास्कर के चेयरमैन रमेश चन्द्र अग्रवाल अरबपति बन कर बैठे हैं . ऐसे में हॉकरों के साथ मारपीट करना कहीं से उचित नहीं है .
क्या रमेश चन्द्र अग्रवाल ने अपनें लोगों को रांची में यही निर्देश दिए है की किसी भी प्रकार वहां पर अपनें पेपर को लोगों तक पहुँचाओ .
हमलोगों को मानना है की भास्कर को रांची में अभी संयम से काम लेना होगा . शुरुआत में इस तरह की गुंडागर्दी से रांची के लोगों के बीच उनकी छवि ख़राब हुई तो इसका असर पेपर के वितरण पर भी पड़ेगा . बेहतर यह है की भास्कर अपनी लड़ाई सड़क पर ना लड़ कर कंटेंट को लेकर अपनें प्रतिद्वंदियों से लड़े . क्योकि आखिर में 'कंटेंट ही किंग' होता है . जब आपका कंटेंट बढ़िया होगा तो फिर लोग ख़ुद ब बख़ुद आपके पेपर की मांग अपनें हॉकरों से करेगें और फिर इस तरह के लड़ाई की ज़रुरत ही नहीं पड़ेगी .
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