Tuesday, September 7, 2010


मेरे लिए बदनाम हो जाओ "मुन्नी'

(मंगलवार /07 सितम्बर 2010 / सौरभ कुमार गुप्ता /नई दिल्ली )

बदनाम होने के लिए तैयार मुन्नी। बदनाम करने पर आतुर ज़माना और शायद मुन्ना भी। गुलाबी गाल, शराबी नैन और नवाबी चाल वाली मुन्नी के झंडू बाम से सिनेमा हॉल होने तक का सफर।

बात यहां गाने की या मलाईका की नहीं और न ही लिखने वालों या बजाने वालों की, बल्कि समाज की। बात मासूमियत खो देने को बेसब्र ज़माने की। शिल्पा से फिगर की चाहत और बेबो की अदाओं की आपस में होड़ की। वैस्टर्न होने के बावजूद झटकों में फिल्मी मज़े की। मुन्नी से जुड़ी हर बात के सरओम होने और उसके अमिया से आम होने की बात। सब मुन्नी के लिए।

किसी दोस्त ने गाने से अति प्रभावित होकर कहा कि गाने में ऐसा कुछ है कि ये राष्ट्रीय गान सा हो गया है। मैंने सुनकर सोचा कि वाकई इस गाने पर आज वैसे सवाल नहीं उठते जैसे किसी गाने में डबल मीनिंग होने पर पहले अटपटा महसूस करते थे लोग।

ख्याल हो आया आने वाले शादी के सीज़न में इसी गाने पर झूमते लोगों का, उन बैंड वालों का जिन्होंने इस गाने को बैंड पर बजाने की प्रैक्टिस शुरू कर दी होगी। जागरण करवाने वाली उन पार्टियों का, जिन्होंने इसी गाने की तर्ज़ पर माता मैया के भजन रच लिए होंगे। एक लाईन मेरे मन में भी आ गई जो इस तरह फिट की -- 'मैंने तो ज्योत जलाई, ओ मैया तेरे लिए'। शायद ये ख्याल इसलिए क्योंकि इस बार जनमष्ट्मी के मौके पर इसी तरह के भजनों को सोसाइटी के प्रोग्राम में सुन मेरे पड़ोसियों को बड़ा खराब लगा।

लेकिन बात फिर बदनाम हो चुकी या लगातार बदनाम हो रही मुन्नी की। ये मुन्नी वाकई में है या केवल एक काल्पनिक पात्र है। जो भी है आसपास वालों के दिमाग पर हावी है। ऐसा लगता है कि मुन्नी है कि मानती नहीं। वो बदनाम हुए जा रही है। इतनी तेज़ी से बदनाम हो रही है मानो कुछ ही समय में वाघा बॉर्डर पार कर दूसरे मुल्क में पहुंच जाएगी। क्या मुन्नी ने सोचा होगा बदनाम होने के बारे में या वो भी कोई बड़ी डिग्री ले कुछ बन जाना चाहती थी बदनाम होने से पहले। लेकिन मुन्नी को बदनाम कर आगे ब़ाने वाले तो उसे हर जगह मिल जाते होंगे। ऐसे में फिर वो एक जगह ही क्यों बदनाम हो।

रूख फिर गाने की ओर। टकराव की स्थिति पैदा करता गीत। किसके बीच। बदनाम हुई मुन्नी असल में ये नहीं ज़ाहिर होने देना चाहती, खुद को, कि वो बदनाम है और ज़माने में बदनाम रूप में ज़ाहिर हो चुकी मुन्नी हैरत में है कि आखिर वो कैसे बदनाम है। सिर चकरा रहा है। मुन्नी के गाने पर थिरकती, उसकी प्रशंसा करती कोई लड़की ऐसा इसलिए कर ले रही है शायद, क्योंकि उसकी और मुन्नी की छवि, बाहरी रूप से मेल नहीं खाती। शायद उसे लगता हो कि वो कोई और है जो बदनाम है। जिसे कोई मुन्ना न जाने कैसे बदनाम कर चला गया है।

मुन्नी और उसकी बदनामी में अपनी भूमिका तलाशता हर कोई 'बदनामी' में भी भरपूर रस ले रहा है। ऐसे में केवल किसी फिल्म का गीत बनाकर नहीं देखा जा सकता इस गाने को। शोध का विषय बना ले इसे कोई।

2010 के समाज पर चोट, विरोधाभासों को जीते आदमी को आईना, डार्लिंग के तौर पर संबोधित मुन्नी को बदनाम करने वालों पर व्यंग्य और भी न जाने क्या क्या प्रतीत होता ये गीत अचानक। इसे मेरे आसपास वालों की ओर से, मेरे कुछ और आसपास वालों की खातिर, श्रद्धांजलि।

(लेखक सौरभ कुमार गुप्ता दिल्ली में एक नेशनल न्यूज़ चैनल में कार्यरत हैं और मीडियामंच के लिए खासतौर से फिल्मों पर कॉलम लिखते हैं. )

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