Monday, September 27, 2010

थके हारे भारत की बेशर्म मीडिया
(सोमवार /27 सितम्बर 2010 / आवेश तिवारी /नेटवर्क 6 )

ये हिन्दुस्तान की मीडिया का अब तक का सबसे शर्मनाक चेहरा है इस चेहरे में बाजारुपने से उपजी बेशर्मी साफ़ नजर आती है , ऐसी बेशर्मी उस वक़्त भी नजर आई थी जब मुम्बई पर आतंकी हमला हुआ था ,ये बेशर्मी उस वक़्त भी नजर आई थी जब सुरक्षाबलों ने देश के गरीब राज्यों में नक्सली उन्मूलन के नाम पर अघोषित युद्ध शुरू कर दिया था ,और अब जब राष्ट्रमंडल खेल शुरू होने में महज चंद घंटे शेष हैं , हर बेशर्मी के पीछे सिर्फ आर्थिक लाभ और टीआरपी की कुकुरदौड़ | अगर ईमानदारी से हिंदुस्तान के खबरिया चैनलों की राष्ट्रमंडल खेलों की कवरेज को देखा जाए और साथ में विदेशी अख़बारों की सुर्ख़ियों को पढ़ा जाए तो दोनों में कहीं से कोई अंतर नजर नहीं आएगा ,आलम ये कि मौका मिले तो पूरे आयोजन में आग लगा दे ,बम फोड़वा दे या फिर आतंकी हमला करा दे |

ये पोस्ट लिखते वक्त मेरी निगाह जी न्यूज पर थी जिसमे पिछले तीन घंटे से ब्रेकिंग न्यूज के रूप में दो ख़बरें दिखाई जा रही थी ,जिनमे पहली खबर थी कि "खेल गाँव में सांप दिखा "और दूसरी खबर थी "दिल्ली में 250 कुत्ते पकडे गए "|वहीँ आजतक और आई बी एन--7 पर भी खेलगांव में खिलाड़ियों के साथ साथ कुत्ते ,बिल्लियों की मौजूदगी ,अधूरी तैयारियों के अलावा गोरों की नाराजगी पर एक्सक्लूसिव ख़बरें परोसी जा रही थी ,अखिल कुमार का बेड टूट जाना कुछ ऐसा था जैसे पूरे देश के चेहरे पर किसी ने कालिख पोत दी हो|अगर मीडिया की निगाहों से देखा जाए तो सौ सवा सौ करोड़ की आबादी वाले भारत में जहाँ ओलम्पिक खेलों में एक एक पदक के लिए आँखें तरसती हैं न तो खेलने का मादा है न खेलों को आयोजित करने का |अगर इन चैनलों की सुनें तो इस देश पर ,यहाँ के नेताओं पर ,यहाँ की व्यवस्था पर और सबसे बड़ी बात हिन्दुस्तानियों के चरित्र पर सिर्फ और सिर्फ शर्म की जा सकती है|आस्ट्रेलिया में भारत विरोधी अभियान को हवा देने के लिए कुख्यात सिडनी मार्निंग हेराल्ड ने भी अपनी भड़ास निकालने के लिए हिन्दुस्तानी चैनलों की कवरेज का सहारा लेते हुए कहा कि "हिन्दुस्तानी मीडिया भी मानता है कि भारत को राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन नहीं लेना चाहिए था "|
अभी कुछ ही दिन बीते होंगे जब आस्ट्रेलिया में हिन्दुस्तानियों को चुन चुन कर मारा जा रहा था ,हिंदुस्तान की तमाम कोशिशों के बावजूद न तो हत्याएं रुकी और न ही ऑस्ट्रेलिया ने इसके लिए माफ़ी मांगी ,मामला सीधे रंगभेद से जुड़ा था ,उस आस्ट्रेलिया से क्या उम्मीद की जा सकती है कि वो इन आयोजनों की तैयारियों को लेकर भारत की पीठ ठोकेगा ?या फिर न्यूजीलेंड ,इंग्लेंड जैसे देश जो भारतीय महाद्वीप के किसी भी देश में खेलते वक्त संभावित आतंकवादी हमलों से उतना ही डरते हैं जितना मच्छरों के काटे जाने से, और जहाँ के कई खिलाड़ी अपने खराब फ़ार्म का ठीकरा खराब तैयारियों पर थोपकर आयोजन से पूर्व ही बीच मैदान से भाग खड़े हुए हैं ,क्या ये देश आयोजन के सफल होने की कामना करेंगे ?दुखद ये है कि हिंदुस्तान का मीडिया भी पश्चिमी देशों की इस साजिश में बराबर का हिस्सेदार बन गया है ,ये वो मीडिया है जिसे अबसे पहले सिर्फ दिल्ली की ख़ूबसूरत सड़कें ,मेट्रो ट्रेनें और आयोजक मंडल द्वारा दी जाने वाली पार्टियाँ ही नजर आ रही थी|विज्ञापनों के लिए जमकर लाबिंग हो रही थी और राष्ट्रमंडल खेलों में इस्तेमाल की गयी गरीब हिन्दुस्तानियों के पसीने की कमाई में कफ़नखसोटी को लेकर मीडिया और मिनिस्टर्स जाम से जाम लड़ा रहे | उस वक़्त किसी ने भी अधूरी तैयारियों को लेकर न कोई खबर चलायी और न ही कलमाड़ी की तिकड़मों का भंडाफोड़ किया ,लेकिन दरवाजे पर बारात पहुँचने से पहले ही इन चैनलों ने रिसियाए रिसियाए समधी की तरह शादी को रोक देने की धमकी देने का काम शुरू kar दिया | ये क्या कम शर्मनाक है कि अब जबकि आयोजन शुरू होने वाले हैं कोई आम आदमी नहीं जानता कि मुख्य स्पर्धाओं का प्रसारण कौन सा चैनल करेगा ?हमें याद आता है अभी पिछले दिनों बीजिंग में ख़त्म हुआ फ़ुटबाल का विश्व कप , जिसे दर्शकों तक पहुँचने के लिए न सिर्फ यूरोप बल्कि समूची दुनिया के देशों के निजी चैनलों ने नुकसान की परवाह किये बगैर भारी कीमत चुकाकर भी अधिकृत चैनलों से अपलिंकिंग कर अपने दर्शकों तक फ़ुटबाल को पहुँचाया |
मुझे गर्व है हिंदुस्तान की हाकी टीम पर जिसने सबसे पहले मीडिया के इस नकारात्मक प्रचार का विरोध किया ,मेनचेस्टर और मेलबर्न राष्ट्रमंडल खेलों में भाग ले चुकी महिला हाकी टीम की कप्तान सुरिंदर कौर कहती हैं "हमने दुनिया भर में टूर्नामेंट खेले हैं ,हमें यहाँ खेलगांव और ट्रेनिंग वेन्यु के इंतजाम अब तक के सर्वश्रेष्ट लगे ,पता नहीं क्यूँ इनको लेकर आलोचना की जा रही है ,हाकी टीम के कप्तान राजपाल सिंह ने भी इंतजाम को उम्मीद से काफी बेहतर बताया |
अगर हम हिन्दुस्तानी मीडिया की निगाहों से देखें तो पाएंगे कि अगर इस देश में खेलों को लेकर कुछ अच्छा हो रहा है तो वो सिर्फ क्रिकेट तक ही सीमित है ,सचिन शतक बनाये तो थोड़ी ही देर बाद ये चैनल्स शुभकामना संदेशों से कमाई करने में जुट जायेंगे ,धोनी की दुल्हन की खुबसूरत चेहरे की पहली झलक एक्सक्लूसिव खबर बन जायेगी ,लेकिन इन्हें हिंदुस्तान के खिलाड़ियों के कैम्पों में पसरी बदहाली नजर नहीं आएगी ,इनके पास ऐसा कोई विजुअल नहीं मिलेगा जो ये दिखला सके कि हम इतनी मेहनत के बावजूद क्यूँ पदकों की दौड़ में पीछे रहे जाते हैं ?क्यूँकर एक और पीटी उषा देश में पैदा नहीं होती ,और क्यूँकर हिंदुस्तान बार बार हारता ही है ,चाहे वो खेल का मैदान हो या फिर ग़रीबी ,भूखमरी और भ्रष्टाचार के खिलाफ आम आदमी की जंग |

(लेखक न्यूज़ वेबसाइट 'नेटवर्क 6' के संचालक हैं )

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