मीडिया का नीतिशीकरण और स्टार न्यूज़!
बुधवार /20 अक्टूबर 2010 / अनंत झा / देवघर )
बिहार में होनेवाले विधान सभा चुनाव का परिणाम भले ही 24 नवम्बर को आने वाला हो,मगर मीडिया के सबसे ताकतवर माने जाने वाले इलेक्ट्रोनिक चैनलों ने तो हद ही कर दी है.आखिर अभी पहले चरणों का चुनाव भी नहीं हुआ है और देश के सबसे ताकतवर माने जाने वाले स्तम्भ ने तो नीतिश को मानो दुबारा मुख्यमंत्री बना ही दिया है.आखिर मीडिया क्या साबित कर रही है?आखिर खुद को सबसे अव्वल कहने वाले समाचार चैनल स्टार न्यूज़ को ये क्या हो गया है?सरोकारों की पत्रकारिता तो बहुत दूर की बात अब तो बस सिर्फ चंहुओर नीतिश ही नीतिश है.'कौन बनेगा मुख्यमंत्री' जैसा बेकार कार्यकर्म दिखलाकर आखिर दीपक चौरसिया किसकी मार्केटिंग कर रहे है ये तो वही जाने लेकिन इस बेशर्म पत्रकारिता ने तो घिन्न मचा रखा है.ये वही दीपक चौरसिया है जिन्हें केंद्र में राजग गठ्बन्धन वाली सरकार के समय मरे पड़े चैनल डीडी न्यूज़ का सर्वेसर्वा बनाया गया था.हलांकि दीपक चौरसिया की पत्रकारीय क्षमता पर शक करना गलत होगा परन्तु दीपक चौरसिया ने तो डीडी न्यूज़ में कोई झंडा तो नहीं गाडा अलबत्ता वहां मेहनताना के रूप में मिले भरी भरकम पैसों ने दीपक की साख पर बट्टा जरुर लगा दिया.
अब वापस मूल मुद्दे पर.पिछले दिनों स्टार न्यूज़ और ऐजी नील्सन ने बिहार में चुनावी सर्वे कराया.बिहार की कुल 243 सीटों पर होने वाले चुनाव के लिए.सर्वेक्षण की रिपोर्ट जब स्टार न्यूज़ पर चली तो इस विशेष कार्यकर्म के एंकर किशोर आजवानी भी हैरत में थे.इस सर्वे ने नीतिश की चाटुकारिता की नयी मिसाल लिख दी.कुल 243 सीटों के लिए हो रहे इस चुनाव में बकौल सर्वे कुल 120 सीट जदयू को मिलने का दावा किया,जबकि पिछले चुनाव में जदयू को मात्र 88 सीटें ही मिली थी.वहीँ दूसरी और नीतिश की सहयोगी दल भाजपा को 50 सीटें मिलने की बात कही गयी और गत चुनाव में यह संख्या 55 थी.हालाँकि राजद और लोजपा दोनों के सीटों में लगभग 50 प्रतिशत की गिरावट का दावा भी चैनल ने किया है.हालाँकि कांग्रेस के दोगुने होने वाले लाभ के बारे में भी इस सर्वे रिपोर्ट में दिखलाया गया है.यानि नीतिश बाबु भी खुश और राहुल बाबा भी खुश.तो क्या देश के आम लोग इस बात को मान ले कि स्टार न्यूज़ ने सरकारों को खुश रखने का भार लिया है.
अब बात अंदरखाने की.नीतिश अपने मुख्यमंत्रित्व काल में अपने तानाशाही के लिए भी ज्यादा चर्चित रहे है.बिहार के बड़े बड़े अखबार को सरकार का कोपभाजन उस समय झेलना पड़ा है जब किसी मीडिया वर्ग ने नीतिश की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करने की जहमत उठाई हो.बिहार के बड़े अख़बारों का सरकारी विज्ञापन तक अलिखित रूप से बंद कर दिए जाते थे.चूँकि इस बात की भी संभावना है की नीतिश की सरकार दुबारे सत्ता में लौट सकती है.ऐसे में सभी मीडिया वर्ग नीतिश की नाराजगी क्यों मोल लेगा.यानि बिहार का पाठक और दर्शक फिर से 'बुडबक' बन चुका है.
(लेखक अनंत झा पिछले एक दशक से झारखंड की पत्रकारिता में सक्रिय हैं. प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक दोनों मीडिया में काम करने का अनुभव है. इन दिनों यायावरी कर रहे हैं.
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