Thursday, October 28, 2010

नीतीश ,मीडिया और बिहार का सच

(गुरुवार /28 अक्टूबर 2010 / अरुण साथी / शेखपुरा )


बिहार चुनाव में विकास की बात बढ़-चढ़ कर की जा रही है। खास कर मीडिया में इसे ऐसे पेश किया जा रहा है जैसे यह कोई तिलिस्म हो और इसके जादूगर नीतीश कुमार। लोकतन्त्र में जनता ही मालिक होती है यह बात भले ही सही हो पर इस मालिक को दिग्भ्रमित करने की राजनीति में मीडिया का सहयोग कुछ इस तरह का है जैसे वह सड़ाध को रोकने का यन्त्र हो और इस यन्त्र के प्रयोग के लिए धन बल प्रभावी है और इत्र की सुगंध में सब गुम हो रहा है।

बिहार के चुनाव में सबकुछ वैसा नहीं है जैसा दिखाया जा रहा है। दिल्ली से लेकर प्रदेश के राजनीतिक विश्लेषक नीतीश कुमार को जिस विकास पुरूष का ढिंढोरा पीट कर महान नेता बता रहें हैं दरअसल जमीनी सच्चाई कुछ और ही है। सबसे पहले नीतीश कुमार जिस बिहार के विकास की बात कह रहें है उसके रगों में नशे के जहर का इंजेक्शन देकर उसके भविष्य को हमेशा हमेशा के लिए मारने का काम किया है। आज आलम यह है कि बिहार के गांव में गली गली खुले सरकारी शराब की दुकानों में 10 से 15 साल के स्कूली बच्चे शराब खरीद कर आने वाले बिहार की नई पीढ़ी की दिशा को तय कर रहें हैं।

बिहार के विकास के यह कैसी बानगी है कि जाली प्रमाण पत्र पर 80 प्रतिशत अंक बाले शिक्षक बने लोग इंजिनीयर और आइएएस पैदा करने वाली बिहार की उर्वरा भूमि को दीमक की तरह चाटने लगे है। आलम यह कि बड़ी संख्या में माध्यमिक और उच्च विधालय के शिक्षक अंग्रेजी में अपना नाम नहीं लिख सकते। चारित्रिक रूप से पतित लोग, शराबी और व्याभिचारी शिक्षक बन बैठे है और लिखने में भी शर्म आ रही है पर सच यह है बिहार के विद्यालयों में वैसे लोगों की वजह महिला और पुरूष शिक्षकों के प्रेमप्रसंग और अनैतिक सम्बंध की चर्चा बच्चे करते हैं और विद्यालयों में शिक्षक कार्यालय में बैठ कर नीली सिनेमा की चर्चा करते है। और तो और मध्य वर्ग की छात्राओं से अवैध सम्बंध को लेकर शिक्षकों की पिटाई हो रही है और इस सब के दोषी नीतीश कुमार है जिन्होने प्रमाण पत्र लाओ नौकरी पाओ की तर्ज पर जाली प्रमाणपत्र घारकों को नौकरी दी वह भी महज वोट बैंक के लिए और शिक्षकों की बहाली अनपढ़ मुखीया तथा पंचायत सेवक ने मोटी रकम लेकर कर दी और रातो रात करोड़पति बन गए। शिक्षक के नियोजन का खेला है कि आज मुखीया और पंचायत सेवक की संपति की जांच हो तो एक बड़ा धोटाला सामने आएगा।
बात अगर अपराध की हो, तब भी अपराध का ग्राफ बेशक नीचे आया है पर अकेले शेखपुरा जिले में तीन माह के अन्दर दिन दहाड़े एक दर्जन लोगों की हत्या कर दी गई और इस मामले में पुलिस मोटी रकम लेकर अपराधियों को संरक्षण दे रही है। नेताओं का कद भले ही नीतीश जी ने कम किया पर आज थाने में मोबाइल गुम होने की प्राथमिकी दर्ज कराने में 200 रू. लगते है और थानेदार किसी की नहीं सुनता। और एक टिक्स जो थाने में अपनाई जाती है वह है प्राथमिकी दर्ज नहीं करने की और अपराध का ग्राफ अमुमन नीचे रहेगा।

बढ़ते नक्सली प्रभाव को कैसे बिहार पर विश्लेषण करने वाले शातिराना ढ़ग से छोड़ देते है पर सच्चाई यह है कि बिहार के छ: जिलों में अपना प्रभाव रखने वाले नक्सली आज 26 जिलों में अपनी समानन्तर सरकार चलातें हैं।

बिहार में यदि सबकुछ ठीक है तो फिर इन्दिरा आवास में पहले जहां 500 नज़राना लगाता था वह आज 10000 क्यों हो गया

बिहार में यदि सबकुछ ठीक है तो मनरेगा में 75 प्रतिशत राशि फर्जी रूप से बिना काम कराये क्यों निकाल ली जा रही है।

बिहार में आज विकास की बात होती है पर जातीबाद और अपराध का राजनीतिकरण नीतीश कुमार क्यों कर रहें है। नवादा जिले से जेलब्रेक का अपराधी प्रदीप महतो एक बानगी है जिसने दिनदहाड़े दो पुलिसबालों की हत्या कर कुख्यात अशोक महतों को जेल से छुड़ाकर भाग गया, आज बारसलीगंज से जदयू का प्रत्याशी क्यों है। नीतीश कुमार के स्वाजातिय लोगों को बहुलता से प्रत्याशी बनाया गया भले ही वे कम क्षमता रखतें हो। अवैध हथियारों का तस्कार सोनी मुखीया शेखपुरा से स्वजातिये होने की वजह से उम्मीदवार है।


नीतीश कुमार की ही देन है कि विकास राशि को अपराधी और अफसर मिल कर लूट लिये। पांच साल में कोई ऐसा जिला नहीं जिसमें अपराधी ठेकेदार बना और आज करोड़पति है।

एक बात तो साफ है कि बिहार में सबकुछ ठीक नहीं है जैसे मिडिया में दिखाया जा रहा है पर यदि कुछ ठीक है तो वह है नीतीश कुमार का मिडिया मैनेजमेंट । अब देखना यह है कि शिकारी आएगा, दाना डालेगा, जाल बिछाऐगा हम नहीं फंसेगे कहानी के तर्ज पर जनता जाल में फंसती है या नहीं...............

(लेखक शेखपुरा ,बिहार में पत्रकार है )

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