Tuesday, October 26, 2010
सौरभ की समीक्षा -- हिस्स्स...
(मंगलवार /२६ अक्टूबर २०१०/ सौरभ कुमार गुप्ता /नई दिल्ली )
इस बार समीक्षा केवल पब्लिक डिमांड पर। वो भी इसलिए कि न जाने कितने लोगों को यह बताकर थक गया हूं कि जब भी बेहद खराब फिल्मों का इतिहास लिखा जाएगा, तो उसमें भी मल्लिका शेरावत की फिल्म 'हिस्स' को शायद ही जगह मिल पाए।
त्योहारों के मौके पर इस फिल्म की टिकट पर खर्च किए जाने वाले पैसों का कहीं और भी कुछ बेहतर इस्तेमाल हो सकता है। चलिए बुराई शुरू करते हैं।
सबसे पहले ये कि पूरी फिल्म में चांद हमेशा पूरा ही निकला रहता है। फिर ये भी, कि इरफान खान की एक सास है जो उन्हें लड़की समझती है। और फिर ये भी, कि दिव्या दत्ता ऐसी बीवी हैं जिनकी एंट्री रोते हुए ट्रेजिक सीन में होती है लेकिन बाकी पूरी फिल्म में उनका दर्द जैसे अमृतांजन बाम लगाकर कहीं गायब हो जाता है।
खैर ये सब सिर्फ शुरूआत। अब बात फिल्म में ढूँढने से भी न मिलने वाली कहानी की। फिल्म क्या है, बूझो तो जानो टाईप का मामला है। गलती से फिल्म देखने पहुंचे हर बंदे को राज़ की बात पता थी कि एक नागिन जी हैं, जो सबको मार रही हैं। लेकिन इंस्पैक्टर बने इरफान खान को तो फिल्म में इंवेस्टिगेशन कर के ज़ाया होना ही था। हर समय इसी पहेली को सुलझाने की लुक में रहे इरफान पूरी फिल्म में।
अच्छा हां, फिल्म में एक मासूम सांप शीशे के बक्से में कैद है और उसे देख ऐसा लगता है कि जैसे वो दर्शक से कहीं ज्यादा इस इंतज़ार में है कि भई कब ये फिल्म खत्म हो और अपने को आज़ादी मिले। मैं ज़ोर देकर बताना चाहता हूं कि उस सांप ने फिल्म में मल्लिका से ज्यादा एक्सप्रेशन दिये हैं। सांप के हर क्लोज़ अप में आपको उसका दर्द, उसकी मासूमियत साफ नज़र आ जाएगी और इसे बेहद खूबसूरती से कैप्चर किया है कैमरे ने।
हम सब पागल हैं। हम में से किसी को ये पता ही नहीं है कि कैंसर का ईलाज है नागमणि। डाक्टर लोग देखो बेकार में दवाईयां बनाने में लगे हैं। सब नागमणि ढूँढने निकल पड़ते तो आसानी हो जाती सबके लिए।
ज़िक्र तो मल्लिका का भी करना ही होगा। बचना चाह रहा था इससे। लेकिन चलो। सबसे अच्छी बात मल्लिका और दर्शकों के लिए ये रही कि पूरी फिल्म में, ध्यान दें, पूरी फिल्म में मल्लिका का कोई डॉयलॉग नहीं है और लगभग पूरी फिल्म में कपड़े भी नहीं पहने हैं। हैरान इसलिए न हों क्योंकि भई नागिन बनी हैं तो डॉयलॉग होते भी तो हमें नागभाषा में कैसे समझ आते। रही बात कपड़ों की तो बढती उम्र के साथ कपड़े छोटे हो गए इसलिए पहने नहीं। जब भी कुछ कहने का मन सा होता है, मल्लिका फिल्म में चिल्ला लेती हैं। बस काम पूरा हो जाता है।
कभी भी, किसी भी सीन में मल्लिका शेरावत कहीं भी पाई जा सकती हैं। किसी पेड़ पर, झाड़ी में और एक बार तो लैंपपोस्ट पर चढ़ते हुए। गज़ब। अब इतना पढ़ लिया है तो ये भी पढ़ लें कि अगर फिल्म नहीं देखी तो कोई पाप नहीं चढ़ेगा। पैसे बचेंगे। समय और जीवन के साथ न्याय होगा।
अभी ये भी जान लो कि ये फिल्म को इंटरनेशनल बनाने के लिए इस फिल्म में विलेन एक अंग्रेज़ है जो पूरी फिल्म में सिर्फ बक्से में बंद सांप को डराता रहता है, कभी उसको बिजली का झटका देता है और दर्शक के साथ साथ वो खुद भी सिर पकड़े रहता है क्योंकि उसे ब्रेन कैंसर है। उसका बार बार सांप को ये कहना कि 'बुला उस नागिन को' आपको ये सोचने पर मजबूर करता है कि उस गुफा में जहां वो बंद है, नेटवर्क कहां आ रहा होगा जो बेचारा नाग उसे बुला ले।
ये इस फिल्म के खिलाफ किसी नाग संस्था ने विरोध क्यों नहीं किया, पोस्टर क्यों नहीं फाड़े, जलाए। खैर।
फिल्म देख ली तो डॉयरेक्टर को यही कहोगे। मार ही डालोगे।
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