Monday, November 8, 2010

क्रिकेटर पीके बहक गया

(सोमवार /08 नवम्बर 2010 / सलीम अख्तर सिद्दीक़ी/मेरठ )

मेरठ का क्रिकेटर प्रवीण कुमार जब भारतीय क्रिकेट टीम का हिस्सा बने था तो मेरठ में जश्न का माहौल था। मेरे लिए इसलिए भी गर्व की बात थी कि पीके हमारे ही मौहल्ले का एक साधारण लड़का था, जिसे मैं गलियों में बच्चों के साथ क्रिकेट खेलते हुए देखता था। जब पीके ने अपने पहले ही मैच में आस्ट्रेलिया के खिलाफ शानदार प्रदर्शन करते हुए अपने चयन को साबित किया तो हमारा सीना गर्व से और ज्यादा चौड़ा हो गया था। उस समय मशहूर थ्रिलर उपन्यास लेखक वेदप्रकाश शर्मा ने 'डीएलए' अखबार में एक लेख 'बहकना मत पीके' शीर्षक से लिखा था। उस लेख में वेद ने पीके को सफलता के नशे में न बहकने की नसीहत दी थी। लेकिन पीके बहक गया। मेरठ में एक व्यापारी के साथ हाथापाई के साथ ही कई मामलों में पीके की काफी फजीहत हो चुकी है।

लगभग एक साल पहले एक मामला ऐसा हुआ था, जो मीडिया में नहीं आ पाया था। हुआ यूं था कि पीके सुबह सवेरे अपनी लगजरी गाड़ी निकाल रहा था। गली थोड़ी तंग है। थोड़ा अनाड़ी पन के चलते पीके ने एक अखबार बांटने वाले हॉकर की साइकिल में टक्कर मार दी। हॉकर के सिर में गम्भीर चोटें आईं थीं। तब पीके, उसके भाई विनय और पिता सकट सिंह ने हॉकर को कोई कानूनी कार्यवाई न करने का अनुरोध किया और यह वादा किया था कि वे उसके इलाज का पूरा खर्च उठाएंगे। लेकिन पीके और उसका परिवार वादे से मुकर गया। गरीब हॉकर को पूरा इलाज अपने पैसों से कराना पड़ा था। दो-तीन महीने काम का जो नुकसान हुआ वह अलग था।

लगातार कामयाबी के बाद पीके बहकता चला गया। कहते हैं कि जब एक अति साधारण आदमी सफल होता है तो वह सबसे पहले अपने ही गरीब साथियों से किनारा करता है। कल यह बात साबित भी हो गयी। कल पीके ने अपने ही पड़ोस में रहने वाली लड़की सपना, जो शूटर है, से सगाई की है। कल सुबह एक समाचार-पत्र से मेरे पास फोन आया कि सुना है आज पीके की सगाई है। मैंने कहा मुझे नहीं मालूम मैं पता करके बताता हुं। मैंने उसके पड़ोस में रहने वाले अपने एक परिचित से फोन करके पूछा तो उसने बड़ी तल्खी से कहा-'हां कुछ हो तो रहा है, ऐसा लग रहा है जैसे सगाई न होकर कोई ऐसा गलत काम किया जा रहा है, जो किसी को पता न चले।' बात यहीं खत्म नहीं हुई। मीडिया से सख्त परहेज बरता गया। पीके के कुछ दोस्त उसके घर की ऐसे निगरानी कर रहे थे, जैसे कोई मीडिया वाला आ गया तो अनर्थ हो जाएगा। शायद यही वजह थी कि पीके के घर पर कुछ लोगों का जमावड़ा था तो पास-पड़ोस में वीरानी छाई हुई थी। जिन लोगों ने पीके को क्रिकेट का कखग बताया, वो भी मन मसोस कर रह गए। शायद पीके अपने आप को अब सानिया मिर्जा या अमिताभ बच्चन की श्रेणी में रखने लगा है। इन दोनों हस्तियों ने भी अपनी और अपने बेटे की शादी में मीडिया से बेरुखी दिखाई थी।

पीके ने मीडिया से बेरुखी दिखाई तो मीडिया ने भी पीके को आईना दिखाने में कसर नहीं छोड़ी। खासकर 'अमर उजाला' ने पीके की एक तरह से बखिया उधेड़ कर रख दी। अमर उजाला ने पीके के संघर्ष के दिनों की एक तस्वीर छापी है। उस तस्वीर के कैप्शन में लिखा गया है-'अमर उजाला कार्यालय में कुछ वर्ष पहले खींचा गया यह फोटो पीके ने बड़ी मिन्नतें करने के बाद छपवाया था। आज सफलता के नशे में चूर उसी पीके ने मीडिया को सगाई समारोह से दूर रखा।'

पीके को वेदप्रकाश शर्मा के 'डीएलए' में छपे लेख को दोबारा पढ़ना चाहिए। यदि उनके पास उपलब्ध ने हो तो डीएलए दफ्तर से मंगा कर पढ़ें। पीके को यह बात समझ लेनी चाहिए कि सफलता के साथ असफलता भी जुड़ी होती है। उन्हें कई क्रिकेटर याद होंगे, जो धूमकेतु की तरह चमके और फिर गुमनामी में खो गए। सफलता पाकर न बहकने वाला आदमी ही लोगों के दिलों में जगह पाता है। पीके को सफलता के नशे में न चूर होने का सबक सचिन तेंदुलकर से सीखने की जरुरत है।

(लेखक जाने -माने पत्रकार है .आप उनके लेख 'हाक बात' ब्लॉग पर भी पढ़ सकते हैं . )

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