Thursday, December 9, 2010

मैं आतंक हूँ



(विनोद मिश्रा / दिल्ली)



मै आतंक हूं..।

वो आतंक जिसे पूजा-पाठ और घंटियों की आवाज नही धमाकों का शोर पसंद है।

मैं आतंक हूं..मुझे पूजा की थाली की लपटे नही आग की ज्वाला शातिं पहुंचाती है। मुझे पूजा-पाठ की मस्ती में झूमते लोग पसंद नही, मातम में चिखत-चिल्लाते लोग पसंद है।

मै आतंक हूं.. मै कभी ट्रेन की बोगियों में आता हूं.. तो कभी साइकिल पर सवार होकर। कभी मिल्क कंटेनर मे, कभी प्रेशर कुकुर में, कभी टिफिन-बॉक्स तो कभी कुड़ेदान में छुप कर रहता हूं।

मैं आतंक हूं.. मैं जब भी आता हू..तबाही लाता हूं. और मेरे जान के बाद मेरे पीछे छुट जाती है छीख-पुकार..बेजान पड़े पत्थरों में अमोनियम नाइट्रेट की गंध..एल्मुनियम की छड़े कुछ तार..और टक-टक करती घड़ी की आवाज.। वो आवाज जो मेरे होने का, मेरे वजूद का अहसास कराती है।

मै आतंक हूं..वैसे मेरा कोई नाम नही लेकिन अपन देशवासी मुझे इंडियन मुजाहिद्दीन के नाम से जानते है। मैं रोजमर्रा की जिंदगी में काम आने वाली चीजों की मदद से मौत का खेल खेलता हूं। यानी हर रोज की जिंदगी में काम आने वाली चीजों में मौत का सामान ठूंसकर मौत का धमाका करता हू

मै आतंक हूं। मैं अपनों के बीच रहता हूं, लेकिन उन्हें पहचानता नही यही वजह है कि भीड़ में खड़ा हर चेहरा मुझसे डरता है, ट्रेन में सफर करने वाला हर शख्स मुझे पहचानने की नाकाम-कोशिश करता है लेकिन मेरा कोई चेहरा नही है..अपनों के बीच रह कर अपनों को मिटाना ही मेरी पहचान है..तभी तो मुझे..इंडियन मुजाहिद्दीन कहते है। अगर आप मुजे अभी भी नही पहचान पाए..तो याद करिए मातम के उन लम्हों को ..


मै आतंक हूं। हाई-टेक होते अपने देश के साथ मैं भी हाई-टेक हुआ.. हर धमाकों के बाद या चंद मिनट पहले ई-मेल भेजकर जिम्मेदारी लेना मेरा टेरर स्टाइल है। मैने जितने भी धमाके किए सबकी जिम्मेदारी भी ली। मैने बकायादा ई-मेल भेजा। अपनों के बीच रह कर उनपर हमला करना आसान तो नही, इसिलिए मैने सबका काम अलग-अलग बॉट दिया है।

मै. आतंक हूं..मैं इंडियन मुजाहिद्दीन हूं.. मुझसे बचना है तो मुझे मुझे अच्छी तरह पहचान लो. क्योकि मैं अपनो के बीच रहता हूं..अपनों पर वार करता हूं..मै आतंक हूं। मै इंडियन मुजाहिद्दीन हूं।


(लेखक नई दिल्ली में एक नेशनल चैनल के जाने -माने क्राइम रिपोर्टर हैं. )

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