Thursday, January 22, 2009

लड़की हो , तो मीडिया में नौकरी जरूर मिल जायेगी

इस पोस्ट को मैंने युवा पत्रकारों द्वारा बताये गए अनुभव के आधार पर लिखा है . इस लिए बड़े पत्रकार लोग इसे अन्यथा ना ले .

मंदी के इस दौर में नौकरी की बात कर रहा हु ..... माफ़ कर देना । मीडिया में काम करता हु , इस लिए मीडिया की नौकरी के बारे में बात करूँगा । मैंने मीडिया में नौकरी पाने के लिए कई लड़को को संघर्ष करते हुए देखा है । उनका दर्द देख कर कई बार मुझे रोना आता है । सही तो है ..... जब लड़के चैनल हेड को फ़ोन करते है तो फ्री रहते हुए भी ...कहते है की अभी व्यस्त हु ...लेकिन जैसे ही किसी लड़की की मधुर वाणी ने कान में प्रवेश किया ..... जो महोदय अभी तक ब्यस्त थे , फ्री हो जाते है ... सबसे पहले मेल द्वारा फोटो मंगा लेते है ,ताकि थोबडा पहले देख लें ..नही तो बाद में बुला कर पछताना न पड़े ॥ जी हां ..... आजकल मीडिया में लड़को के लिए जॉब काफी मुश्किल हो गया है चाहे वह कितने ही प्रतिभावान क्यो न हो । यदि , यही हाल रहा तो आने वाले दिनों में मीडिया में महिला पत्रकारों का ही ,बोलबाला रहेगा ।लेकिन भइया नौकरी पर लेते वक्त योग्यता की भी परख कर लो । आख़िर इस युग में लड़को ने लड़को के रूप में जनम लिया है , तो इनमे इनका क्या कसूर है....

इस पोस्ट के लिए महिला पत्रकारों से कमेन्ट की अपेछा नही है .

लतिकेश शर्मा ,मुंबई

10 comments:

Prabhakar Pandey said...

किसी के लिए कटु हो सकता है पर सत्य एवं यथार्थ लेखन। धन्यवाद।

मसिजीवी said...

ये विचित्र आरोप कतई नया नहीं है न ही पत्रकारिता पहला क्षेत्र है जिमें ये आरोप लग रहा है ! आमतौर पर मीडिआकर लोगों की सतही आपत्ति होती है ये!

मान लें की ऐसा हो रहा है तथा काफ़ी दिनों से ऐसा हो रहा है तब तो बहुत सी महिलाएं अब उच्च पदों पर होनी चाहिए मीडिया में! अगर हाँ तब लड़कों के लिए बहुत सी नौकरियाँ होनी चाहिए क्योंकि वे भी तस्वीर देख कर 'सुंदर' पुरुषों को नौकरियन दे रही होंगी


मंदी एक सच्चाई है इसलिए नौकरियाँ मिलनी मुश्किल होना तय है इसके लिए इतना कड़वा और सामंती होने की जगह विवेकपूर्ण बने रहना समझदारी है.

संकेत पाठक... said...

सही कहा आपने, आज मीडिया में लड़कों की यही हालत है, अपने को पत्रकार समझने वाले चैनल हेड लड़कों से मिलने को तक तैयार नही होते, जॉब देना तो दूर की बात है ,हालाँकि मंदी के इस दौर में एक ओर जहाँ कोस्ट कटिंग की जा रही है, वहीँ लड़कियां जॉब पाने में सफल हो रहीं है. इसे में सिर्फ़ पत्रकारिता की विडंबना ही कहूँगा.

Nikhil said...

ब्लॉग पर तो ऐसी कोई शिकायत नहीं है ना आपको....

सागर मंथन... said...

जी शर्माजी, जो मीडिया बाकी क्षेत्रो में फैले इस रोग को बड़े धमाकेदार अंदाज़ में परोसती है.. वो मीडिया कभी अपने गिरेबान में झांकने की जहमत नही उठाती, ये हमारे उन नौजवान दोस्तों के लिए काफ़ी गंभीर बात है, जो मीडिया क्षेत्र में नौकरी पाने के इच्छुक है, और बदकिस्मती से लड़के है... कभी कभी शुरुवाती दौर में इन नौजवान लड़को को अपने लड़के होने पर अफ़सोस होता है... मीडिया के इस नारी प्रेफेरेंस रोग से मीडिया की इज्ज़त दाव पर लगी हुई है..

sarita argarey said...
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sarita argarey said...

मीडिया से आपका ताल्लुक सिर्फ़ बकबकिया न्यूज़ चैनलों से है ,तो आपकी बात सही मानी जा सकती है । रही बात अखबार की तो वहां आज भी पुरुषों का ही बोलबाला है । लडकियों को सब मिलकर आसानी से आने ही नहीं देते ..। लडकियां अपनी मेहनत और काबिलियत के बूते पर ही आगे बढ सकती हैं ये कब समझेंगे आप लोग । जिस तरह से आपने महिलाओं के कमेंट्स पर रोक लगाने की बात कही है ,उससे तो यही लगता है कि आपको ही अपनी योग्यता पर भरोसा नहीं ।

latikesh said...

मैडम आप का कमेन्ट पढ़ा ,
सबसे पहले मेरे पोस्ट पर कमेन्ट करने के लिए शुक्रिया . मैंने पोस्ट में किसी महिला से कमेन्ट की अपेछा नही की है . मैंने उनके कमेन्ट देने से मना नही किया है . आप सही कह रही है की इस तरह के कमेन्ट वे ;लोग करते है जिनेह अपने ऊपर यकिन नही होता . लेकिन में साफ़ कर दू मैंने यह पोस्ट कुछ पत्रकारों के अनुभव के आधार पर लिखा है . खैर सब का अपना अपना नजरिया है . आप मेरे पोस्ट पर कमेन्ट भेजते रहे . आप की बेबाक राय मुझे आछि लगी. गूगल में टाइप कर भेज रहा हु . कुछ खामिया है . आशा करता आप नज़रंदाज़ कर देंगे .
लतिकेश शर्मा
मुंबई

latikesh said...

प्रभाकर जी,
आप के कमेन्ट के लिए ध्यन्वाद.
में हमेशा से कटु लिखता रहा हु. शायद इस लिए लोकप्रिय नही हु.
लतिकेश
मुंबई

latikesh said...
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