भइया टीआरपी के बारे बात चली है तो , मै पहले आपको बता देता दू , जिस तरह आम जिंदगी में आदमी की हैसियत का अंदाजा उसके बैंक बैलेंस से लगाया जाता है, उसी तरह मीडिया में न्यूज़ चैनल्स की औकात उसकी टीआरपी से लगायी जाती है । भइया ,यह टीआरपी बड़े काम चीज़ है ॥यदि न्यूज़ चैनल्स की टीआरपी नही है ..तो फ़िर उसकी औकात भी कम होती है . टीआरपी हासिल करना एक ऐसी अंधी दौड़ है., जिसमे शामिल होना आज के तारीख में सारे न्यूज़ चैनल्स की मज़बूरी है . क्योकि टीआरपी का मतलब भले ही टेलिविज़न रेटिंग पॉइंट्स होता हो ,लेकिन न्यूज़ चैनल्स यदि टीआरपी बढ़ी तो यह टेंशन रिलीफ़ पॉइंट्स है और यदि घट गई तो टेंशन रिलीज़ पॉइंट्स है . टीआरपी को हासिल करने के लिए न्यूज़ चैनल्स में वे सारे हथकंडे अपनाये जाते है ...जो जवानी के दिनों में लड़की को पटाने के लिए अपनाए जाते थे ...जिस तरह प्यार और ज़ंग में सब जायज होता है ..उसी तरह टीआरपी हासिल करने के लिए सारे हथकंडे जायज़ है . यह एक ऐसा फल है की यदि बढ़ कर मिले तो सिर्फ़ एक आदमी खाता है ..और यदि कम हो जाए तो कर्मचारियों में थोड़ा थोड़ा बाट दिया जाता है ..ताकि कड़वाहट कम हो जाए . तो भइया न्यूज़ चैनल्स में काम करने के लिए सोच रहे हो ..तो टीआरपी बढ़ाने के तरीके साथ लेकर आना ..तभी लम्बी पारी खेल पायोगे , नही तो टीआरपी घटी , और नौकरी गई .
लतिकेश
मुंबई
1 comment:
बढ़िया लेख बढ़िया जानकारी
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गुलाबी कोंपलें
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