Sunday, March 15, 2009

दादा और दादी का किरदार क्यो डैड होता जा रहा है


हर बच्चे के लिए माँ और पिता काफी अहम् होते है ,वही परिवार में दो चेहरा और भी लोकप्रिय हुआ करता था ,वो चेहरा था दादी और दादा का , आज की तारीख में यदि शहर के बच्चो से कही दादा और दादी के बारे में पूछो तो डर लगता है ..कही ये न बोल पड़े ...दादी और दादा कौन होते है ...जी हा , आज के बच्चो के लिए माँ और पापा ही उनके लिए सब कुछ होते है .आज के बच्चे दादी और दादा के प्यार से मरहूम होते जा रहे है ..आज कल एकल परिवार के बढ़ते चलन की वजह से आज के मासूम बच्चे दादा दादी का प्यार खोते जा रहे है ...वो प्यार जो कुछ अर्थो में माता पिता के प्यार से भी जरूरी हुआ करता था ..आज के माता पिता ..पैसा बनाने के चक्कर में घर से बाहर रहते है ..और इस दौरान जब बच्चो को अपने सवाल के जवाब के लिए किसी की जरुरत होती है ,तो वो दीवारों से अपने सवाल के जवाब तलाश करता है ..उसके घर में कोई ऐसा नहीं होता है जो उसके मासूम से सवाल का जवाब दे पाए ..ऐसे सवाल ,जिसके जवाब कभी दादा दादी काफी प्यार से दिया करते थे .उन जवाब में जहा प्यार की चाशनी चढी रहती थी ,वही उनमे सीख भी छुपा रहता था .आजकल हम सोचते है की बच्चो के दादा दादी गाँव में पड़े है तो टीक है लेकिन यह नहीं जानते है की जिन मासूम का भविष्य बनाने के लिए हम दिन रात मेहनत कर रहे है ..उन बच्चो की सिर्फ पैसो से उनकी तकदीर नहीं सवारी जा सकती .उन्हें घर में कोई ऐसा आदमी चाहिये , जो उनके साथ बच्चा बन करे कभी खेले तो कभी छोटी छोटी बातो उन्हें संस्कार का सेंस भी सिखा जाये .लेकिन क्या भाग दौड़ की जिंदगी में हम इस बारे में सोच पाते है ., जिंदगी की कड़ी धुप में बरगद की छाव बन कर जिस माँ बाप ने हमें बड़ा किया ..शहर में आने के बाद हमने उस छाव को भुला दिया ,और साथ ही उन मासूम पौधे को भी उस छाव से अलग कर दिया जिस छाव में पौधे सूखते नहीं बल्कि पल्वित होते है ॥

लतिकेश
मुंबई

2 comments:

समयचक्र said...

आज भी कई परिवारों में दादा दादी को समुचित सम्मान दिया जाता है . धन्यवाद.

संगीता पुरी said...

सवाल सम्‍मान का नहीं है ... आज बच्‍चे मां पिताजी के साथ नहीं रह पाते और मां पिताजी भी अपने घरो को नहीं छोड पाते ... संयुक्‍त परिवार टूट गए हैं ... कभी कभी देखने के कारण बच्‍चे उन्‍हें पूरी आत्‍मीयता से स्‍वीकार नहीं कर पाते ... भले ही दादा दादी के लिए बच्‍चे जान से बढकर हों।