
6 मई यानी सुनवाई के 12 वे दिन कसाब , फहीम और सबाहुदीन पर ८६ आरोप अदालत ने तय किये । अब गवाही शुरु हुई।गवाह नंबर एक थे पीएसआई भाष्कर कदम जिन्होने सहायक पुलिस निरीच्छक संजय गोहीलकर और पुलिस नीरिच्छक हेमंत बावधनकर के साथ मिलकर गिरगांव चौपाटी पर कसाब और उसके साथी अबू इस्माईल के खूनी खेल को रोका था।सिपाही तुकाराम ओंबले शहीद हो गये थे।बताते है एपीआई गोहिलकर की समझदारी से ही कसाब जिंदा पकडा जा सका था।बहरहाल गवाही के दौरान ही दोपहर के भोजन का समय हो गया । आधे घंटे का लंच ब्रेक हुआ। आरोपियों को बाहर ले जाया गया। लेकिन काजमी की आपत्ति की वजह से गवाह भाष्कर कदम को अदालत में ही बैठना पडा। तब अनायास ही मेरे मूंह से निकल पडा था..कैदी आजाद - गवाह कैद।
लंच के बाद गवाही फिर से शुरु हुई । गिरगांव चौपाटी पर उस रात हुये पुरे वाकये का जिक्र हुआ। लेकिन पुरी गवाही के दौरान कसाब के चेहरे पर कोई शिकन तक नही दिखी।उल्टे वो मुश्कुराता रहा। एक बार तो चच ने उसे डांटा भी कि यहां सबूतों की जांच चल रही है और तूम हंस रहे हो । इसमें हंसने की क्या बात है?
मुझे याद है अदालत में जब गवाह नंबर एक को कसाब की एके४७ दिखायी जा रही थी तो कसाब की आंखे चमक उठी थी।
अदालत में एक वक्त ऐसा भी आया शहीद एडिशनल सीपी अशोक कामटे और आतंकी कसाब दोनो की एक४७ गवाह नंबर दो को दिखाकर दोनों में अंतर पुछा गया । कसाब की राईफल का बट खुला हुआ था...लेकिन दुसरी राईफल का बट नही खूल रहा था। कटघरे में खडे पुलिस की असफल कोशिश के बाद जज नें भी कोशिश की । कटघरे में बैठा कसाब हंस पडा।लेकिन जज ने जब उसे फिर से डांटा तो उसने पुरा दोष हमपर मढ दिया ये कहकर कि प्रसवालों ने उसे हंसाया।
सुनवाई के २०वे दिन अदालत में एक ऐसा गवाह आया जिसकी उम्र को लेकर काजमी ने विवाद खडा कर दिया।
जज महोदय को काजमी का ये कदम बेतुका लगा उन्होने काजमी को याद दिलाया कि ये मत भुलो तुम्हे अदालत ने नियुक्त किया है। इसलिये बेतुके सवाल कर अदालत का वक्त जाया ना करो। ऐसा कई बार हुआ जब काजमी का रवैया अदालत को नागवार गुजरा।
हमें भी लग रहा था कि ऐसी घटना जिसे शैकडो लोगों ने अपनी आंखों से देखा था।जिसकी पुरी करतूत सीसीटीवी में कैद है। उसे गुनहगार साबित करवाने के लिये इतनी मशक्कत करनी पड रही है फिर सिॆफ शक के बिना पर पकडे गये आरोपियों को दोषी साबित करवाने के लिये कितना मशक्कत करना पडती होगी। मेरे मन में उठी ये टीस कुछ इस तरंह निकली।
पता नही साबित क्या करना चाहता है कसाब का वकील.
उलझे सवालों से गवाहों को भरमाता है कसाब का वकील
दुनिया को दिखाने के नाम पर हम उडा रेह है खूद का मजाक।
हमारे खून की होली खेलकर ,हमारी ही छाती पर मूंग दल रहा है कसाब।
अदालत में गवाही का दौर चलता रहा ...धीरे धीरे पत्रकारों का संखया कम होने लगी। कभी कभी तो सुनवाई बहुत नीरस होती और खबर भी निकलती नही दिखती तो दुख भी होता।आखिर क्या मूंह लेकर जायेगें दफ्तर । बॉ़स ताना मारेगें कि पुरा दिन एसी में बैठ कर निकाल दिया।
ये विशेष अदालत कुछ मायने में कैद जैसी भी थी..क्योंकि अंदर हमें फोन ले जाने की इजाजत नही थी.
अंदर जाकर हम कुछ घंटो के लिये पुरी दुनियां से कट जाते। एक पत्रकार खासकर के टीवी पत्रकार के लिये ये श्वास रुकने जैसा है। लेकिन ये अदालत शांति मंदिर जैसी भी थी। जहां आप कुछ पल शांति से बिता सकते थे।
शांति की खोज में लोग भटकतें है जहा तहां।
मंदिर मस्जिद चर्च और ना जाने कहा - कहां।
पर पत्रकारों के लिये तो बस थी अदालत जहा चलरहा कसाब का मुकदमा ।
जहां मिलती थी शांति कुछ पल क्योंकि बाहर हो जाता है उनका फोन जमा।
मुकदमा हर दिन आगे बढ रहा था।गवाह पर गवाह आ रहे थे । सीएसटी के गवाहों और पीडितों का भी नंबर आया ।
जिसमें से कुछ ने तो रुला दिया। खासकर १० साल की बच्ची देविका रोटावन । जो वैशाखियों के सहारे आयी थी ।कसाब की गोली ने उसके एक पैर को जख्मी कर दिया था।उसने अदालत में कसाब को पहचाना । उसके पिता नटवरलाल रोटावन तो इतने विफर पडे थे कि लग रहा था कि कसाब पर टूट ना पडे।
कामा अस्पताल के पीछे हुई मूठभेड में जिसमें तत्कालीन एटीएस चीफ हेमंत करकरे, एडिश्नल सीपी अशोक कामटे और एनकाउंटर स्पेशलिस्ट विजय सालस्कर शहीद हुये थे।पुलिस की उस जीप में अकेले बचे कांस्टेबल अरुण जाधव ने तो कसाब पर अपशब्दों की बौछार कर दी ...हालांकि जज ने उसे डांटा। कहा मत भूलो तुम पुलिस वाले हो।
फारुखी नामके कवाह ने तो कसाब के वकील को यहा तक कह डाला कि आप लोग मजा ले रहे हैं।
लेकिन वहा होते तो आप लोगों की पैंट उतर जाती।
नफीसा कुरेसी नामकी गवाह जिसकी पांच साल की बेटी हमले में मारी गई थी..खूद भी घायल हुई थी।गवाही देते समय भावूक हो गई। पति उसे धीरज देने के लिये आगे बढा तो बचाव पच्छ ने आपत्ति की। इसपर उसने कहा बेटी मेरी मरी है आपकी नहीं। आपके घर के का कोई मरता तो पता चलता।ये ऐसे च्छण थे जब पीडितों के जज्बात कानूनी दलीलों पर भारी पड रहे थे।कई दॆदनाक कहांनियां सूनकर तो हमारे रोंगटे खडे हो गये।
बचाव पच्छ ने तो इसे सरकारी वकील की रणनीति तक करार दिया...विशेष सरकारी वकील उज्जवल निकम पर गवाहों को सिखाने का आरोप भी लगा। काजमी और निकम में जमकर नोकझोक भी होती।
जज को कहना पडता भई ये अदालत है लोकसभा नही।
सरकारी वकील की अदालतमें गवाहों को लेकर जो बेकरारी और बानकी दिखती वो भी देखने लायक होती।
यूं तो अदालत में जज ही सूप्रीम होता है।
उसकी इजाजत के बिना पत्ता भी नही हिलता।
लेकिन मैने देखी है एक वकील की जूर्रत ।
नाम है उज्जवल निकम हरपल भिडाता है जुगत।
जारी.....
सीएसटी पर उस रात तैनात पुलिस वालों की भी गवाही हुई। किसी ने २० तो किसी ने ८ राउंड फायर करने का दावा किया।पर अफशोस मौत के सौदागरों को एक भी गोली छू नही पायी। ये वही पुलिस है जिसने हजारों को मुठभेड मार गिराने का दावा किया है। अब कैसे भरोसा करें।
अभी तक अपने हर गुनाह से मुकरने वाले कसाब ने जुलाई २००९ को अचानक अपना गुनाह कबूला।
लगा कि वो टूट गया है ...लेकिन अदालत नें उसके इस बयान को इकबालिया बयान मानने से मना कर दिया। उस समय अदालत के फैसले पर झूझलाहट हुई। आखिर जब कसाब खूद होकर गुनाह कबूल कर रहा है तो अदालत उसे कबूल क्यों नही कर रही। मुकदमा तुरंत समाप्त करने का अच्छा मौका था ये।
लेकिन बाद में हमे एहसास हुआ कि जज का फैसला सही था। क्योंकि जब ३१३ के बयान की बात आयी थो कसाब की असली फितरत सामने आ गयी । उसने कहा कि वो तो मुंबई बॉलीवूड में किस्मत आजमाने आया था।
जुहू पर घूम रहा था तभी पुलिस ने उसे पकड कर कैद कर लिया और २६ नवंबर की रात आरोपी बना दिया।
एक बार तो अदालत के ये कहने पर कि गवाहों ने तुम्हारी पहचान की है । कसाब ने जवाब दिया कि उसमे कोई बडी बात नही वो फेमस आदमी है ...पुरी दुनिया के अखबारों और टीवी मे उसकी तस्वीरे छपती है।
उसका ये रुप हमे हैरान करने वाला था...कि सुनवाई के पहले दिन का कसाब और आज के कसाब कितना अंतर है।
खैर वो भी दिन भी आया जब वकील अब्बास काजमी को अदालत ने चलता कर दिया ।कसाब का वकालत नामा लेने के बाद से ही सुरच्छा घेरे में चलने वाले काजमी एकाएक पैदल हो गये।ये कसाब के दुसरे वकील की विदाई थी।
अब तक अदालत में कसाब की सहायता कर रहे के पी पवार कसाब को अदालत नें नया वकील नियुक्त कर दिया।
उस समय केंद्र में सरकार बनाने की कवायद चल रही थी जहां शरद पवार के पीएम बनने की भी चर्चा थी।
इसलिये अदालत में भी केपी पवार के बहाने पवार इन वेटिंग की चूटकी ली जाती।
धीरे -धीरे कसाब की हंसी गायब होगई ...अब वो अदालत में काफी गंभीर रहता..एक दो बार उसने खाने में कुछ मिलाने की शिकायत भी की ।लेकिन जांच में कुछ नही निकला।
इसबीच फहीम अंसारी के वकील शाहिद आजमी की हत्या कर दी गई। उनकी जंगह नें आरवी मोकाशी ने फहीम के लिये बहस किया । सबाहुदीन के लिये वकीव एजाज नकवी और वकील ठोंगें की जोडी ने पैरवी की।
आखिरकार ३ मई की को अदालत नें अजमल आमिर कसाब को दोषी ठहरा दिया जबकि फहीम और सबाहुदीन को छोड दिया।ये कहकर की उनके खिलाफ पर्याप्त सबूत नही है।
हमें भी कोई हैरानी नही हुई क्योंकि शुरु से ही दोनो के मामले में पुलिस का दावा कमजोर लग रहा था।
हमसभी जज के फैसले को सराहे बिना नही रख सके ।
वैसे जज एम एल ताहिलियानी का ब्यवहार पुरी सुनवाई के दौरान बहुत सुलझा हुआ रहा है।अखबारों में कभी कुछ ऐसी खबरें भी छपी जिनपर उन्हे आपत्ति थी । लेकिन कभी उन्होने उसे मुद्दा नही बनाया। यहा तक कि एक बार तो एक अखबार मे छपा था कि जज नें काम की व्यस्तता में महीने भर से अपपनी पत्नी से बात तक नही की।
उन्होनें कहा ऐसी रिपोर्टिंग ना करे वर्ना मेरा घर उजड जायेगा।
अब वो घडी भी मुकर्रर हो चुकी थी जिसका पुरी दुनिया बेसब्री से इंतेजार कर रही थी।
तारीख थी ६ मई ...अदालत के पहले दिन की तरंह मै इस दिन भी सुबह ७ बजे ही अदालत के बाहर पंहुच चुका था।
अब वक्त आ गया था साल की सबसे बडी खबर ब्रेक करने का। मेरी ही तरंह हर चैनला का रिपोर्टर उसी जूगत में था।
चुंकि ये गारंटी देना मुश्किल था कि मै ही अदालत से सबसे पहले बाहर दौड कर आ पाउंगा। इसलिये मैनें औऱ मेरे साथी निशात शमसी ने तय किया कि बाहर निकलते ही मैं दूर से ही गले पर हाथ रखूगां तो समझ जाना कि कसाब को फांसी की सजा सुनाई गई है।मैं दस बजे ही अदालत के अंदर चला गया क्योंकि अगर पहले भागना है तो दरवाजे के पास की जगंह पर बैठना भी जरूरी था।
तकरीबन एक बजकर पंद्रह मिनट पर जैसे ही जज एमएल ताहिलियानी ने कसाब को बताया कि उसे चार गुनाहों में मौत की सजा सुनाई गई है।हम सभी दरवाजे की तरफ लपके ..तभी जज ने फरमान सुनाया कि कोई बाहर नही जायेगा।उन्होनें दरवाजा बाहर से बंद करवा दिया।लेकिन हम सभी दरवाजे ही चिपके रहे ..बिल्कुल मुंबई की लोकल ट्रेन की भीड़ की तरहं।आखिरकार तकरीबन बीस मिनट बाद जज ने कसाब को उसके सेल में ले जाने का आदेश दिया।उसके कुछ मिनट बाद ही अदालत के दरवाजे का एक पल्ला खुला। और हम बाहर निकलने के लिये रगड पडे।
कल्पना कीजिये १५ लोग एक साथ एक पल्ले से बाहर निकलने की कोशिश करेगें तो क्या होगा।
बहरहाल कसाब के लिये बनाया बुलेट फ्रूफ गलियारा पार कर हम आईटीबीपी गेट की तरफ भागे।तभी पिछे किसी के गिरने की आवाज आई। लेकिन किसी के पास इतना समय नही था कि वो पलट कर देखे।
असली मुससीबत तो अब शुरु हुई थी। आईटीबीपी के जवानों ने दरवाजा खोलने से इंकार कर दिया..ये कहकर कि वो इस तरंह भागने नही देगें। सभी लोग लाईन में आये। लेकिन ये कहां होने वाला था। कोई पिछे जाने को तैयार नही था। उल्टे उस तकझक में कुछ लोग आगे ही घूसने की फिराक लगे थे।
बडी मुश्किल से अपना चश्मा बचाते हुये मै तीसरे और चौथे पर अपना वजूद बनाये हुये था।
आईटीबीपी के जवान दरवाजा खोलने को तैयार नही थे..वो हमे पिछे धकेल रहे थे और हम दरवाजा खोलो- दरवाजा खोलो चिल्ला रहे थे।करीब ८ मिनट तचक उन्होने हमें रोके रखा ...लेकिन फिर उन्हे भी लगा कि इन्हे सुधारना मुश्किल है। इसलिये थोडा सा दरवाजा खोल दिया । अब उसमे से निकललने के लिये जो संघर्ष हुआ उसमे मेरी शर्ट फट गयी।खैर अब हम पुलिस के आउट प्वाईंट पर थे जहां हमे मिला विशेष स्कैन कराकर बाहर जाना होता है।
लेकिन शुक्र है वो हमारी आदत से परिचित थे...लिहाजा उन्होने कोई जबरदस्ती नही की ।
मैं उम्मीद के मुताबिक चौथे नंबर पर ही बाहर निकलपाया लेकिन जैसा कि पहले से तय था मैने वहीं से गले पर हाथ घुमाया और हमारी रिपोर्टर संचिका पांडे ने तुरंत खबर ब्रेक कर दी।
इस तरंह मै चोथा होकर भी पहला बन गया।
(लेखक एनडीटीवी मुंबई में सीनिअर क्राइम रिपोर्टर है . )
No comments:
Post a Comment