Thursday, July 8, 2010

वो जो आलोक तोमर हैं | -आवेश तिवारी का विशेष लेख

(गुरुवार /08 जुलाई 2010 / आवेश तिवारी /लखनऊ )
क्या मै संपादक जी से बात कर सकता हूँ ?जी जरुर वो एक बैठक में हैं ,१० मिनट बाद कीजिये |१० मिनट बाद ......कैसे हैं आवेश जी हम आपकी रिपोर्ट छाप रहे हैं और हाँ सुनिए लगातार लिखते रहिये ,जी सर..... |मेरे लिए बड़ी अजीब सी बात थी ये लगातार लिखते रहिये ,कभी किसी ने नहीं कहा ,कहता भी कैसे हर संपादक आलोक तोमर नहीं होता |कुछ वैसे ही जैसे हर खबर सिर्फ खबर नहीं होती ,कभी कभी ख़बरों को अखबारनवीस जीता भी है उन्हें खाता भी है उन्हें पीता भी है,ख़बरों को जीने वाले ही आलोक तोमर कहलाते हैं |आलोक तोमर से मै आज तक नहीं मिला ,सिर्फ कभी कभार फोन पर बातें ही हो पाती हैं,लेकिन एक चीज की हमेशा हम दोनों के बीच सहमति रही ,हमने उन्हें अपना गुरु माना और उन्होंने चुपचाप मुझे अपना शिष्य बना लिया मै जानता हूँ मैं जितना उन्हें पढता हूँ वो उससे ज्यादा मुझे पढते हैं ,शायद यही वजह है कि जब कभी मै कुछ लिखने बैठता हूँ तो एक बात हमेशा जेहन में रहती है कि अगर उन्हें रिपोर्ट में दम नहीं लगा तो वो उसे अगले ही पल उठा कर कूड़े के ढेर में फेंक देंगे ,या फिर अगर उन्हें अच्छी लगी तो उसे खुद ही सजा संवारकर प्रस्तुत कर देंगे, ये एक चीज हमेशा हमें सही ,तथ्यपरक और सरोकार से जुडी रिपोर्ट्स लिखने को प्रेरित करती रही |न जाने कब आलोक ,मुझ जैसे युवाओं के सेनापति बन गए ,हम नहीं जानते ,लेकिन इतना जरुर जान गए थे कि हमारा सेनापति अपनी सेना को कभी हारने नहीं देगा क्यूंकि उसने हारना सीखा ही नहीं है |वो एक और सिर्फ एक हैं जिनकी उपस्थिति ने हमेशा ये एहसास कराया कि जिस दिन रोटी के लाले पड़ेंगे सिर्फ एक फोन करूँगा, विश्वास है .आलोक जी मुझे भूखे तो नहीं मरने देंगे |


पिछले महीने दिल्ली की सड़कों पर मैं अपने मित्र रंगनाथ सिंह के साथ घंटों आलोक सर के बारे में बात करता रहा ,बातचीत के दौरान एक युवा पत्रकार मित्र का जिक्र छिड़ गया ,जो सीनियर इंडिया में आलोक जी के साथ थे और मेरे भी मित्र थे ,जानकारी मिली कि उसने ने शादी कर ली ,वो भी अंतरजातीय प्रेम विवाह ,लड़की वाले इस विवाह के सख्त खिलाफ थे ,स्थिति यूँ थी कि लड़के की जान पर बन आई थी |लेकिन आलोक जी ने अकेले खड़ा होकर और सबसे लोहा लेकर शादी कराई ,अगर वो न होते तो ये शादी संभव ही नहीं हो पाती |एक बार आलोक जी ने कहा था जब आपके बीच से ही कोई एक साथी काठ की तलवार से ही सही लड़ने का फैसला कर लेता है तो आप सिर्फ तमाशाई क्यों बन जाते हैं?ये सिर्फ कुछ शब्द नहीं थे एक पत्रकार के तौर पर आलोक तोमर आज भी तमाशाइयों की भीड़ में शामिल नहीं होना चाहते ,उन्हें मालूम है कि अगर कोई पत्रकार साथी काठ की ही तलवार उठा रहा हो तो उसके साथ हर मुनासिब हथियार लेकर उठ खड़ा हो जाना है ,हालाँकि उन्हें इसकी कीमत लगातार चुकानी पड़ रही है |


आलोक जी की सबसे बड़ी खासियत ख़बरों के प्रति उनकी ईमानदारी है डेनिश कार्टूनिस्ट का कार्टून छापने के मामले में जो कुछ उनके साथ हुआ ,शायद वो जानते थे कि ऐसा होगा|दिल्ली पुलिस के तत्कालीन मुखिया के के पाल ने आलोक जी को परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी ,आलोक जी हिम्मत नहीं हारे ,लड़ते रहे ,ये बात जगजाहिर थी कि आलोक तोमर ने पाल के बेटे के बारे में जो लिखा था ये सब उसी का नतीजा था ये, अपने आपमें चौंका देने वाली खबर थी कि जो मुक़दमे वो लड़ता है हार जाता है ,ये वो समय था जब दिल्ली तमाम पत्रकार के के पाल के साथ रोज बरोज दारू मुर्गे की दावत खाते थे और कोई उनके खिलाफ एक शब्द भी लिखने से कतराता था ,लेकिन आलोक जी ने साहस के साथ लिखा । ये बात शायद कम लोग जानते हैं कि सीनियर इंडिया में जो कार्टून छपा वो इसी टाइम्स ऑफ इंडिया से उठाया गया था ।प्रथम दृष्टि में देखकर ही पता लगता था कि आलोक तोमर ने ये जानबूझ कर नहीं छापा है लेकिन उन पर कार्यवाही हुई |अजीब सी बात थी कि आलोक जी का उस वक़्त विरोध कर रहे लोगों में तमाम वो लोग थे जो हुसैन द्वारा देवी देवताओं का चित्र छापे जाने पर हो रहे विरोध को लेकर झंडा बुलंद किये हुए थे ,मगर अभिव्यक्ति की स्वतंत्र से जुड़े इस मामले में सबने होंठ सी लिए ,आलोक तोमर उन विकट परिस्थितियों से लड़े और बहादुरी के साथ बाहर आये |ख़बरों में जोखिम लेने का जज्बा हमने उनसे ही सीखाहै ,अगर खबर है तो है ,चाहे वो बरखा दत्त हों वीर संघवी हों या उनके अभिन्न मित्र ओमपुरी हों या फिर कोई और. अगर खबर का वो हिस्सा हैं तो आप आलोक जी से पास ओवर की उम्मीद बिलकुल न करें |


और अब आज गुरुवार को फेसबुक पर ये सन्देश उभरता है “ मित्रो, आपके स्नेह और चिंता से अभिभूत हूँ.मेक्स अस्पताल वालों ने आज चार घंटे लम्बी और सत्तर हज़ार रुपये महंगी जांच के बाद कहा है की है तो केन्सर ही मगर वक़्त पर पकड़ लिया गया है. कल इलाज़ की प्रक्रिया तय होगी. मैं आपका पीछा इतनी ज़ल्दी छोड़ने वाला नहीं हूँ. जिन मित्रों ने फोन किये और सन्देश भेजे, वे मेरी आत्मा पर अंकित हैं.”आलोक अब कैंसर से लड़ेंगे ,लड़ते शेर ही हैं ,बाकी आत्मसमर्पण कर देते हैं ,एक ऐसे वक्त में जब हम हर तरफ हार रहे हैं ,आलोक जी का ये जज्बा लड़ना और लड़ कर जितना सिखाता है ,हम जानते हैं वो कैंसर से भी जीतेंगे,अभी भी बहुत कुछ सीखना शेष है ,उनसे बहुत कुछ पाना शेष है |

(लेखक ' डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट 'समाचारपत्र में लखनऊ के ब्यूरो चीफ़ हैं . )

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