Monday, August 30, 2010


(मंगलवार/ 31 अगस्त 2010 / हृदेश सिंह /मीडिया मंच )
'अंजाना और अंजानी 'एक नई फिल्म....लेकिन संगीत और धुनमें कोई नया पन नहीं। इस फिल्म का संगीत एक खास वर्ग को ध्यान में रख कर तेयार किया गया है....विशाल शेखर की धुनों से सजे इस पुरे एल्बम से गुनगुनाने के लिए गाना तलाश करने में आपको खासी मशक्कत करनी होगी.....सिद्धार्थ आनंद की इस फिल्म में कोई भी ट्रैक ऐसा नहीं है जो लम्बे समय तक याद किया जा सके। अंजाना अंजानी का टाइटल सॉन्ग भी कोई दम नहीं रखता है। विशाल शेखर के म्यूजिक के पसंद करने वालों को इस एल्बम से निराशा हो सकती है।

फिल्म का पहला गीत.. निखिल डिसूजा और मोनाली ठाकुर ने गाया है। गाने के बोलों में कोई दम नहीं है । इस गीत को नीलेश मिश्र ने लिखा है. इस गाने को बस म्यूजिक और नए गायकों की आवाज़ के सहरे सुन सकते है...वो भी ज्यादा नहीं....गाने के बोलों की बात करें तो कोई सुर लय और ताल नहीं है. गाने के बोल बेहद हल्के पड़ जाते है.

एल्बम का दूसरा गाना कुछ हद तक सुना जा सकता है..एक बार फिर लक्की अली की खनकती आवाज़ का जादू इस गाने में है .गाने के बोल सुनने लायक है...गाने की एक लाइन ''जैसे आसमां के छींटें पड़े हों बन के सितारे...''विशाल ददलानी की कलम से निकला अच्छा गीत है.जो उनकी प्रतिभा को भी दर्शाता है। कहना गलत नहीं है इस एम्बम का यही एक मात्र गाना बेहतर है और सुनने लायक भी.....हाँ इस गाने के लिए लक्की अली की तारीफ़ जरूर होनी चाहिए. लक्की अली की आवाज़ ने इस गाने में ऑक्सीजन डाल दी है.

तीसरा गाना उस्ताद राहत फ़तेह अली की आवाज़ में है. गाने का संगीत असर नहीं छोड़ता है. गाने में कई तरह का भटकाव नजर आता है. विशाल और शेखर ने मिल कर इस गाने को लिखा है. यही वजह है गाने के बोल कई जगह अलग अलग दिशा पकड़ते है. गाने को सूफी रंग में रंगने की कोशिश नाकाम रही है. गाना समझ कम आता है. बावजूद ''ख्वाब के रंग में तू अपने जहां को भी रंग दे...'' जैसी एक दो लाइन बेहतर लिख गयीं है.

चौथा गाना आप को ''जाने तू जाने न'' के ''कभी कभी...''की याद दिला देगा. गाने के बोल असर नहीं रखते है. गाने को कारालिसा मोंटिरो,अमिताभ भट्टाचार्य,अन्विता दत्ता ने मिलकर गाया है.इस पुरे एल्बम में जो खास बात है वो ये की नए युवा गायकों ने संगीत और बोलों बावजूद सुंदर गायकी पेश की है..

एल्बम का भविष्य भले ही उज्जवल न हो लेकिन इन सभी गायकों का फ्यूचर ब्राईट है.अंजाना और अंजानी एक प्रेम कहानी पर आधरित फिल्म है.लेकिन फिल्म के निर्देशक सिद्धार्थ आनंद न जाने क्यों इस बात पर ध्यान नहीं दे पाए की हिंदुस्तान में प्रेम कहानी पर आधारित फिल्मों को सफल बनाने में संगीत अहम हो जाता है. इस फिल्म का संगीत कमजोर है. युवाओं के बीच इस फिल्म का संगीत कुछ असर छोड़ सकता है।

तुझे भुला दिया...इस एल्बम का पांचवां गाना है..पहली बार सुनने में शायद ये गाना असर न डाल सके लेकिन कई बार सुनने के बाद ये गाना अच्छा लगने लगता है. विशाल ददलानी की कलम में दम है. लेकिन गीत लिखने के लिए अभी उन्हें ओर मेहनत करने की जरुरत है। गाने का अंतरा विशाल ने खूब लिखा है। पंजाबी में लिखे इस अंतरे को शुर्ति पाठक ने अच्छा गया है.मोहित चौहान की आवाज़ में दम है। ढोलक.तबला और हारमोनियम के इस्तेमाल से इस गाने को जान मिल गयी है.

''आई फील गुड....''इस एल्बम का छठा गाना है. गाना नए ज़माने के मुताबिक है. लेकिन इसमें असर नहीं है. एल्बम में इस गाने को जैसे गिनती बढ़ाने के लिए डाला गया है. इस एल्बम के संगीत की पहुंच एक खास वर्ग तो हो सकती है लेकिन हर किसी की जुबां पर इस फिल्म का संगीत हो....कहना मुश्किल होगा है.

कुल मिला कर ''अंजाना और अंजानी'' संगीत प्रेमियों के लिए एक अंजाना संगीत है जिसे जानने में उनकी रूचि कम ही होगी......

(लेखक उत्तर प्रदेश के एक स्थानीय न्यूज़ चैनल में संपादक के पद पर कार्यरत हैं .)

No comments: