Sunday, September 12, 2010

'हिन्दुस्तान' का सप्लीमेंट ग़ायब ?
(रविवार /12 सितम्बर 2010 /सलीम अख्तर सिद्की /मेरठ )
'हिन्दुस्तान' समेत सभी अखबार नियमित सप्लीमेंट के अलावा कुछ खास मौकों पर भी सप्लीमेंट प्रकाशित करते हैं। कम से कम ऐसे दो अवसर मेरी जानकारी में हैं, जिन अवसरों पर हिन्दुस्तान मेरठ संस्करण के हजारों पाठक खास सप्लीमेंट से महरुम रहे। यह जानकारी मेरठ सिटी की है, देहात में क्या होता होगा, इसकी जानकारी मुझे भी नहीं है। यह जानकारी भी बस इत्तेफाक से ही हो गयी है। सप्लीमेंट गायब होने का पता आम पाठक को न चलकर उन विज्ञापनदाताओं और लेखकों को चलता है, जिनका विज्ञापन अथवा आलेख उस सप्लीमेंट में प्रकाशित होता है। इसी 15 अगस्त को 'हिन्दुस्तान' ने विशेष सप्लीमेंट निकाला, उसमें 'रवि पब्लिकेशन्स', मेरठ ने अपना विज्ञापन दिया था। जब 15 अगस्त को रवि पब्लिकेषन्स के मालिक मनेष जैन ने हिन्दुस्तान अखबार मंगवाया तो उसमें चार पेज का वह सप्लीमेंट था ही नहीं, जिसमें विज्ञापन दिया गया था। उन्होंने उस स्टॉल पर जाकर कहा जो उसने कहा हमारे पास तो इतना ही अखबार आया है। मनेश जैन ने मुझ से पूछा कि क्या तुम्हारे पास सप्लीमेंट आया है। मैंने भी चैक किया तो पता चला मेरे पास भी चार पेज का सप्लीमेंट नहीं आया है। फिर मैंने अपने पड़ोस में मालूम किया तो उन्होंने भी कहा कि कोई अतिरिक्त पेज हमारे यहां नहीं आए हैं। मनेश जैन ने फिर मेरठ रोडवेज बुक स्टॉल से एक प्रति मंगवाई तो उसमें सप्लीमेंट था।
11 सितम्बर को ईद के अवसर पर 'ईद मुबारक' नाम से एक सप्लीमेंट 'हिन्दुस्तान' ने प्रकाशित किया है। उस सप्लीमेंट में मेरा भी एक आलेख छपना सम्भावित था। ईद के दिन 'हिन्दुस्तान' आया तो उसके हर शनिवार को आने वाले नियमित सप्लीमेंट 'रिमिक्स' के अलावा कुछ नहीं था। मैंने सोचा कि शायद किसी कारण से प्रकाशन न किया गया हो। लगभग दस बजे मेरे एक दोस्त ने 'हिन्दुस्तान' में मेरा आलेख छपा होने की जानकारी दी। मैंने यह सोच कर कि शायद किसी वजह से अखबार के साथ सप्लीमेंट नहीं लग पाया हो, एक स्टॉल पर जाकर 'हिन्दुस्तान' खरीदा। उसके साथ भी सप्लीमेंट कॉपी नहीं थी। फिर मैंने रोडवेज बुक स्टॉल से 'हिन्दुस्तान' लिया, वहां पर सप्लीमेंट कॉपी साथ में थी।
सवाल यह है कि आखिर एक बड़े इलाके में एक मुख्य अखबार के सप्लीमेंट का वितरण क्यों नहीं होता ? क्या हॉकर या वितरक सप्लीमेंट न बांटकर उसे रद्दी में बेचकर पैसा बनाते हैं ? क्या प्रतिद्वंदी अखबार किसी साजिश के तहत सप्लीमेंट का वितरण नहीं होने देते ? अखबारों में विज्ञापन छपवाना बहुत महंगा होता है, सप्लीमेंट का वितरण न होना क्या विज्ञापनदाता का नुकसान नहीं है ? विज्ञापनदाता के इस नुकसान की भरपाई कौन करेगा ? क्या यह अखबार के सर्कूलेशन विभाग की कोताही नहीं है ? क्या 'हिन्दुस्तान' का प्रसार विभाग इस ओर ध्यान देगा ?
(लेखक मेरठ शहर के जाने -माने पत्रकार है )

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