खबरिया अपराधों का सरगना है दैनिक जागरण
(सोमवार /11 अक्टूबर 2010 / आवेश तिवारी /नेटवर्क 6 )
हिंदुस्तान में पत्रकारिता के सम्मानित पेशे को धंधे में तब्दील करने के लिए कुख्यात दैनिक जागरण ,खबरिया अपराध की नयी परिभाषाएं गढ़ रहा है , उत्तर प्रदेश में ज्यादा से ज्यादा धन बटोरने की पुरानी जुगत की धार तेज करने के लिए इस बार नक्सलवाद से जुड़े भय और दहशत का सहारा लिया जा रहा है |अखबार के इस रवैये ने जहाँ समूचे प्रदेश मे कानून व्यवस्था के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी है वहीँ आम आदमी का जीना मुहाल किया है |जागरण की ये हरकत न सिर्फ समकालीन मीड़िया के , परदे के पीछे छुपे काले चेहरे को दिखाती है बल्कि इस बात का भी ठोस प्रमाण है कि झारखण्ड से आंध्र प्रदेश तक नक्सलवाद के नाम पर हो रही हत्याओं के इस दौर में में मीड़िया सरकारी थाली में ही खाना खा रही हैं |
उत्तर प्रदेश का सोनभद्र जिला ,हिंदुस्तान की उर्जा राजधानी के नाम से जाना जाता है ,दैनिक जागरण द्वारा इस क्षेत्र से सालाना लगभग डेढ़ करोड़ रूपए का विज्ञापन अर्जित किया जाता रहा है ,इस विज्ञापन का एक बड़ा हिस्सा निजी कंपनियों और व्यवसाइयों के अलावा पुलिस विभाग के माध्यम से जाता रहा है |लेकिन जबसे प्रदेश में मायावती की सरकार आई और इस इलाके में कोयले और अन्य धंधों में भ्रष्टाचार की तमाम सूचनाओं के बाद सी बी आई द्वारा ताबड़तोड़ छापेमारे की गयी ,तो इसका असर जागरण की कमाई पर भी पड़ा ,पुलिस विभाग ने लगभग सभी अख़बारों का विज्ञापन पूरी तरह से बंद कर दिया |
एक ऐसे वक़्त में जब समूचे देश में पेड़ न्यूज के खिलाफ महा अभियान चलाया जा रहा हो ,जागरण अखबार की विश्वसनीयता पर बार बार सवाल खड़े किये जा रहे हो ,बाजार पर अपनी पकड़ बनाये रखने के लिए अखबार ने इस बार बेहद शातिराना चाल चली ,ये चाल थी समूचे सोनभद्र -चंदौली और मिर्जापुर जिले को अति नक्सल प्रभावित घोषित करने की |एक के बाद एक ऐसी ख़बरें जिससे पुलिस के लिए तो मुश्किल खड़ी हो ही ,आम आदमी भी भय और दहशत में जीने लगे ,माओवादियों की तथाकथित बैठकों के अलावा बेहद शांत क्षेत्रों में भी उनकी आमदरफ्त सुर्खियों का हिस्सा बन गयी |ऐसी ही एक कहानी इस अखबार ने एक नहीं कई बार छापी ,जिस वक्त पर झारोग्राम और अन्य जगहों से माओवादियों द्वारा ट्रेनों को अगवा किये जाने और ट्रेनों को डी रेल करने की कोशिशों की खबर आ रही थी ,ठीक उसी वक्त दैनिक जागरण ने पूर्व मध्य रेलवे के सिंगरौली -चुनर खंड के जंगलों से होकर निकलने वाले हिस्सों की बार बार तस्वीर छापी ,इनका नतीजा ये हुआ कि आला अधिकारियों के दबाव में पुलिस उन जंगलों से होकर गुजरने वाले आम आदिवासियों को भी शक की निगाह से देखने लगी ,रोज रोज की पूछ -ताछ बेवजह की गिरफ्तारी |
लेकिन उसके बाद जो हुआ वो बेहद चौका देने वाला था ,ठीक उसी जगह पर जहाँ की तस्वीर जागरण बार बार छाप रहा था ,७ अक्तूबर की रात में पटरियों की फिश प्लेट खोल दी गयी ,आधा दर्जन यात्री ट्रेनों को निरस्त दिया गया, ,दैनिक जागरण ने अपने सभी संस्करणों में खबर छापी कि माओवादियों ने इस घटना को अंजाम दिया है ,साथ ही ख़बरों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का हवाला देते हुए पुरानी छपी ख़बरों के स्क्रिन शाट भी छापे गए ,वहीँ अन्य अखबारों चैनलों ने तथ्यपरक ढंग से इस पूरी घटना के पीछे आपराधिक तत्वों के होने की बात का खुलासा किया ||जागरण अखबार ने इस बेहद गंभीर को लेकर किस तरह से सतही पत्रकारिता की इसका पता उन ख़बरों की सकें प्रति में आप देख सकते हैं एक तरफ अखबार ने लीड स्टोरी छापी कि "नक्सलियों ने फिश प्लेट खोलने से पहले गैंगमेन का अपहरण कर लिया था ",वहीँ दूसरी तरफ उसी पेज पर छपी एक खबर में कहा गया कि "नक्सली हों या बदमाश घटना तो हुई .."..|आनन् फानन में खबर छापने के बाद उत्तर प्रदेश के ए डी जीपी के अलावा तमाम आला अधिकारियों को सोनभद्र आना पड़ा, अगले दिन जागरण कि बाटम स्टोरी में इस वारदात में शामिल नक्सली ,कथित नक्सली हो गए थे!
आखिर झूठ कब तक छुपता ,इस पूरी घटना का सच अगले ४८ घंटों में ही सबके सामने था ,मीडीया कर्मियों और पुलिस द्वारा की गयी अलग अलग जांच में जानकारी मिली कि जिस घटना के पीछे दैनिक जागरण माओवादियों का हाँथ बता रहा था दरअसल वो सब कुछ ,कुछ एक शरारती तत्वों द्वारा किया गया था साथ ही गैंगमेन को बंधक बनाए जाने की बात पूरी तरह से बेबुनियाद है | पुलिस अधीक्षक सोनभद्र डॉ प्रीतिंदर सिंह जिन्होंने हाल ही में आदिवासी इलाकों में स्वस्थ्य सेवाओं की एक श्रृंखला शुरू की है बताते हैं कि हमने उस पूरे इलाके में रहने वाले आदिवासी किसानों से बात की ,किसी ने भी नक्सलियों के आमदरफ्त की कोई सूचना नहीं दी |उन्होंने कहा कि हम जल्द ही इस मामले में शामिल बदमाशों को गिरफ्तार कर लेंगे |
जागरण सिर्फ एक बानगी है ,कश्मीर से लेकर दंतेवाडा तक मीड़िया के बड़े नामों ने अशांति की नयी परिभाषाएं गढ़नी शुरू कर दी है,इंटेलिजेंस की नाकामी को झेल रहे सरकार और सुरक्षाबल मीड़िया की ख़बरों पर विश्वास करके काम करते हैं ,ये ख़बरें सत्ता की ज्यादती के लिए कभी कभी सेल्टर का काम करती हैं तो कभी उनके लिए मुश्किलें खड़ा कर देती हैं ,जबकि ये अखबार ये सब कुछ सिर्फ और सिर्फ अपनी तिजोरी को भरने के लिए करते हैं ,हम इसे सीधे साढ़े शब्दों में पाठकों के साथ धोखाधड़ी और ब्लेकमेलिंग कहते हैं |
(लेखक समाचारों से जुड़े वेबसाइट नेटवर्क 6 के संचालक हैं )
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